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महान स्वतंत्रता सेनानी पं. मदनमोहन मालवीय के बारे में 10 बातें

महान स्वतंत्रता सेनानी पं. मदनमोहन मालवीय के बारे में 10 बातें - profiles of Madan Mohan Malviya
1. पं. मदनमोहन मालवीय (Madan Mohan Malviya) का जन्म 25 दिसंबर, 1861 को इलाहाबाद में हुआ था। उनके पिता का नाम पं. ब्रजनाथ जो कि संस्कृत भाषा के प्रकांड विद्वान थे और श्रीमद्भागवत की कथा सुनाकर आजीविका का निर्वाहन करते थे। उनकी माता का नाम मूनादेवी था। वे अपने 7 भाई-बहनों में पांचवें पुत्र थे। 
 
2. उन्होंने 5 वर्ष की आयु में संस्कृत भाषा में प्रारंभिक शिक्षा लेकर प्राइमरी परीक्षा उत्तीर्ण करके इलाहाबाद के जिला स्कूल में पढ़ाई की तथा 1879 में म्योर सेंट्रल कॉलेज (जो आजकल इलाहाबाद विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है) से 10वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा छात्रवृत्ति लेकर कोलकाता विश्वविद्यालय से सन् 1884 में बी.ए. की उपाधि प्राप्त की।
 
3. वे कहते थे राष्ट्र की उन्नति तभी संभव है, जब वहां के निवासी सुशिक्षित हों। उन्होंने जीवनभर गांवों में शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए अथक प्रयास किए। उनका मानना था कि कोई भी व्यक्ति अपने अधिकारों को तभी भलीभांति समझ सकता है, जब वह शिक्षित हो। राष्ट्र को उन्नति के शिखर पर ले जाना हैं तो वह शिक्षा से ही संभव है।
 
4. वे एक बेहतरीन पत्रकार थे। उन्होंने 1887 से हिन्दी अंग्रेजी समाचार पत्र 'हिन्दुस्तान' का संपादन करके दो ढाई साल तक लोगों को जागरूक करने कार्य किया। उन्होंने दिल्ली आकर सन् 1924 में हिन्दुस्तान टाइम्स के साथ भी काम किया।  
 
5. वे कहते थे कि एक दिन हिन्दी ही देश की राष्ट्रभाषा होगी। हिन्दी के उत्थान के लिए मालवीय जी की ऐतिहासिक भूमिका रही। उन्होंने हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रथम अधिवेशन के अपने अध्यक्षीय अभिभाषण में हिन्दी के स्वरूप पर कहा था कि हिन्दी को फारसी-अरबी के बड़े-बड़े शब्दों से लादना जैसे बुरा है, वैसे ही अकारण संस्कृत शब्दों से गूंथना भी अच्छा नहीं है। 
 
6. पं. मदनमोहन मालवीय हिन्दी, अंग्रेजी और संस्कृत तीनों ही भाषाओं के ज्ञाता थे। उन्होंने मकरंद के उपनाम से कविताएं लिखीं तथा उनकी पत्र-पत्रिकाओं में खूब छपती थीं, जहां लोग उनकी कविताओं को बड़े चाव से पढ़ते थे। Madan Mohan Malviya  
 
7. पं. मदनमोहन मालवीय देशभक्ति, सत्य, ब्रह्मचर्य, त्याग में अद्वितीय व्यक्ति थे। अच्छे आचरण पर केवल उपदेश नहीं देते थे, बल्कि वे स्वयं भी उनका पालन करते थे और अपने सरल स्वभाव, मृदुभाषी होने के कारण ही लोगों के बीच प्रिय थे। 
 
8. उन्होंने पत्रकारिता, वकालत, समाज सुधार, मातृभाषा तथा भारत माता की सेवा में अपना जीवन समर्पित करके युवा वर्ग को चरित्र-निर्माण के लिए भी प्रेरित किया तथा और भारतीय संस्कृति की जीवंतता को अखंड बनाए रखने के लिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की। 
 
9. मदनमोहन मालवीय Indian politician भारत के पहले और अंतिम व्यक्ति थे जिन्हें 'महामना' की सम्मानजनक उपाधि प्रदान की गई थी। उन्होंने कांग्रेस के सभापति के रूप में 'सत्यमेव जयते' को भारत का राष्ट्रीय उद्घोष वाक्य स्वीकारने का सुझाव भी दिया था।
 
10. ऐसे एक महान स्वतंत्रता सेनानी, वकील, पत्रकार और समाज सुधारक पं. मदनमोहन मालवीय का निधन 12 नवंबर 1946 को हो गया था और वे भारत को स्वतंत्र होते नहीं देख सके थे।