Netaji Subhash Chandra Bose :भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के महान क्रांतिकारी नेता रहे नेताजी सुभाष चंद्र बोस को कौन नहीं जानता? वे एक महानतम क्रांतिकारी थे, जिन्होंने 'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा' के नारे से जनता के दिलों में आजाद भारत की ज्योत जलाई थी। आज 18 अगस्त को नेताजी की पुण्यतिथि मनाई जा रही है।
आइए यहां जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी खास बातें-
1. सुभाषचंद्र बोस की मृत्यु : जब 18 अगस्त 1945 को सुभाषचंद्र बोस टोक्यो के लिए निकलने पर ताइहोकु हवाई अड्डे पर नेताजी का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। परंतु उनके अवशेष नहीं पाए गए तभी से यह कयास लगाए जाते रहे हैं कि वे मरे नहीं थे जिंदा है। कहते हैं कि नेताजी जिंदा थे परंतु वे लोगों के सामने इसीलिए नहीं आ सके क्योंकि उन्हें अंग्रेज सरकार ढूंढ रही थी।
2. गुमनामी बाबा :कई लोगों का मानना था कि नेताजी गुमनामी बाबा के नाम से यूपी में 1985 तक रह रहे थे। नेताजी के जीवन पर कुन्ड्रम: सुभाष बोस लाइफ आफ्टर डेथ किताब लिखने वाले अनुज धर का दावा था कि यूपी के फैजाबाद में कई साल तक रहे गुमनामी बाबा ही सुभाष चंद्र बोस थे। उनके मुताबिक, तत्कालीन सरकार के अलावा नेताजी का परिवार भी जानता था कि गुमनामी बाबा से उनका क्या कनेक्शन है, लेकिन वे कभी इसका खुलासा नहीं करना चाहते थे।
3. जय हिन्द : द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए जापान के सहयोग से 'आजाद हिन्द फौज' का गठन किया था। नेताजी सुभाष चंद बोस द्वारा दिया गया 'जय हिंद' का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा है। नेताजी ने भारत की आजादी के लिए विदेशी नेताओं से दबाव डलवाने के लिए इटली में मुसोलिनी, जर्मनी में फेल्डर, आयरलैंड में वालेरा और फ्रांस में रोमा रोनांड से मुलाकात की।
4. स्वतंत्र रेडियो : सुभाषचंद्र बोस एक नाटकीय घटनाक्रम में वे 7 जनवरी, 1941 को गायब हो गए और अफगानिस्तान और रूस होते हुए जर्मनी पहुंचे। 1941- 9 अप्रैल, 1941 को उन्होंने जर्मन सरकार को एक मेमोरेंडम सौंपा जिसमें एक्सिस पॉवर और भारत के बीच परस्पर सहयोग को संदर्भित किया गया था। सुभाषचंद्र बोस ने इसी साल नवंबर में स्वतंत्र भारत केंद्र और स्वतंत्र भारत रेडियो की स्थापना की।
5. आजाद हिन्द फौज : 'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा' का नारा भी उनका था, जो उस समय अत्यधिक प्रचलन में आया। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने अंग्रेजों के देश से रवाना होने से पहले ही खुद को और अपने देश को आजाद घोषित करते हुए आजाद हिंद फौज और आजाद हिंद सरकार की स्थापना की। अंग्रेजों की आंखों में धूल झोंक कर द्वितीय विश्व युद्ध के समय नेताजी सुभाषचंद्र बोस जर्मनी चले गए। फिर उन्होंने देश के बाहर रहने वाले भारतीयों को संगठित कर उन्हें देश की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध किया।
1943 वे जापान पहुंचे और वहां पहुंचकर उन्होंने टोकियो रेडियो से भारतवासियों को संबोधित किया। 21 अक्टूबर, 1943 को उन्होंने आजाद हिन्द सरकार की स्थापना की और इसकी स्थापना अंडमान और निकोबार में की गई, जहां इसका 'शहीद और स्वराज' नाम रखा गया।
आजाद हिन्द फौज अराकान पहुंची और इम्फाल के पास जंग छिड़ी। फौज ने कोहिमा (इम्फाल) को अपने कब्जे में ले लिया। दूसरे विश्वयुद्ध में जापान ने परमाणु हमले के बाद हथियार डाल दिए। इसके कुछ दिनों बाद नेताजी की हवाई दुर्घटना में मारे जाने की खबर आई। माइकल एडवर्ड ने उनके बारे में एक बार कहा था कि- अंग्रेजों को अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी से कोई भय नहीं था। उनके मन में नेहरू का भी कोई डर नहीं था। यदि अंग्रेजों को किसी व्यक्ति से भय था तो वे सुभाषचंद्र बोस थे।