क्या आपको पेड़-पौधों से प्यार है? अगर उनसे प्यार है तो उन्हें तोड़ते भी नहीं होंगे? पर कुछ लोग तोड़ भी देते हैं क्योंकि उन्हें बहुत खूबसूरत लगते हैं शायद वे नहीं जानते होंगे कि तोड़ने पर उन्हें भी दर्द होता है। हां, सुनने में अजीब लग रहा है और ना ही ये कोई आध्यात्मिक दृष्टिकोण है। बल्कि वैज्ञानिक ने इस बात की खोज की थी कि पेड़-पौधों में भी हमारी तरह जीवन होता है। उन्हें भी सुख-दुख का अनुभव होता है, वह भी हमारी तरह संवेदनशील होते हैं। इस बात की खोज भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस ने की थी। 23 नवंबर को उनका निधन हो गया था लेकिन देश को इतना कुछ पहले ही दे गए कि आज भी उन्हें महान वैज्ञानिक के तौर पर याद किया जाता है। आइए जानते हैं वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस के बारे में 10 खास बातें -
- जगदीश चंद्र बोस का जन्म 30 नवंबर 1858 को बांग्लादेश में ढाका जिला के फरीदपुर के मैमनसिंह में एक कायस्थ परिवार में हुआ था उनके पिता अंग्रेजों की नौकरी करते थे। और वह जानते थे कि जगदीश का रुझान भी सरकारी नौकरी की तरफ ही है। लेकिन उनके पिता ने उन्हें विज्ञान पढ़ने की सलाह दी और खुद से कुछ काम करने की सलाह दी।
- जगदीश चंद्र बोस ने अपना अधिकतर समय काम में ही बिताया। उनकी प्राथमिकी शिक्षा गांव में हुई। इसके बाद पढ़ाई के लिए वे लंदन चले गए। लंदन विश्वविद्यालय में चिकित्सा की पढ़ाई करने गए थे लेकिन अस्वस्थ्य होने के कारण उन्हें भारत लौटना पड़ा। इसके बाद प्रेसीडेंसी महाविद्यालय में भौतिकी के प्राध्यापक का पद संभाला। हालांकि उन्हें नस्ल भेदभाव का शिकार होना पड़ा। इसके बाद उन्होंने पद त्याग कर शोध कार्य पर ही पूरा ध्यान दिया।
- वैज्ञानिक बोस को भौतिकी, जीवविज्ञान, वनस्पतिविज्ञान का गहरा ज्ञान था। वे पुरातत्व चीजों के भी ज्ञानी थे। इन सभी के अलावा जगदीश चंद्र बसु को रेडियो का पिता कहा जाता है। जगदीश बसु रेडियो और तरंगों की खोज करने वाले पहले भारतीय वैज्ञानिक थे। साथ ही वह पहले भारतीय वैज्ञानिक रहे जिन्होंने अमरीकन पेटेंट प्राप्त किया।
- जगदीश चंद्र बोस प्रसिद्ध बायोफिसिस्ट कहीं ना कही बसु से जुड़े हुए हैं। बोस ने अपने जीवन का अधिकतम समय शोध में दिया लेकिन उन्हें कभी कोई बड़ा सम्मान नहीं मिला। वे चाहते तो उन्हें मिल सकता था लेकिन उन्होंने कभी किसी भी प्रकार की रिसर्च को पेमेंट नहीं कराया। उन्होंने वायरस तरंगों के लिए अथक प्रयास किए थे। और सामान्य दूरसंचार के सिग्नल की खोज करने में कामयाबी हासिल की। इस खोज को उन्होंने सार्वजनिक कर दिया था। ताकि दूसरे वैज्ञानिक इस पर शोध कर सकें। 1997 में उन्हें इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रिकल एंड एलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर बोस को रेडियो साइंस का जनक करार दिया। श्
- रेडियो साइंस में तो उन्होंने उपलब्धि हासिल की ही। इसके साथ ही वनस्पति विज्ञान में उन्होंने कामयाबी हासिल की। क्रेस्कोग्राफ की मदद से यह समझ आया कि पेड़-पौधों में भी जान होती है। उन्होंने यह बताया कि पेड़ों को भी दर्द होता है। तापमान, रोशनी, बदलाव से उनका जीवन भी प्रभावित होता है। बोस पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने कहा था पेड़-पौधों को भी दर्द होता है।
- जगदीश चंद्र बोस को साहित्य में भी अच्छा ज्ञान था। उन्होंने कई वैज्ञानिक कथाएं लिखी है जो आज भी प्रेरित करती हैं। उन्हें बंगाली विज्ञान कथा-साहित्य का पिता भी माना जाता है।
- जिन तरंगों को बॉस ने पहचाना उसपर लगातार कार्य करते गए। क्योंकि शुरुआत में तरंगे बहुत बड़ी थी जो बहुत दूर तक नहीं पहुंच पाती थी। इसे बोस ने वैज्ञानिक यंत्रों पर देखा भी था। बाद में उन्हें छोटा किया। और उन तरंगों को दूर तक पहुंचाने में सफलता हासिल की।
- कैंब्रिज विश्वविद्यालय में बोस ने प्राकृतिक विज्ञान में दाखिला लिया। अपनी पढ़ाई के दौरान उन्होंने देखा कि कई वैज्ञानिक रेडियो तरंग की गुत्थी सुलझाने में लगे हुए थे। उस वक्त ओलिवर लॉज नामक एक वैज्ञानिक ने रेडियो तरंग से खोज की थी। इस खोज में जाना था कि तरंगे भी लाइट की तरह होती है, जो हवा में तैर सकती है।
- 1895 में बोस ने कोलकाता के एक विश्वविद्यालय में रेडियो तरंग के बारे में बताया। जहां उन्होंने अपने से 75 फीट की दूरी पर एक घंटी का बजा कर दिखाया था। और उसी बीच दीवार भी थी। इस खोज के बाद से बोस दुनिया में मशहूर हो गए।
- विदेश में एक विश्वविद्यालय में बोस एक सभागार में संबोधन दे रहे थे। इस दौरान मार्कोनी भी वहीं मौजूद थे। वे बोस से बहुत खुश हुए और दोनों के बीच बाद में दोस्ती हो गई। इस बीच मार्कोनी ने रेडियो के जरिए संदेश भेजने के बारे में बोस को बताया और उस आइडिए पर काम करने लगे।1899 में वे पर उस पर काम करने लगे। बोस ने 75 मील तक की दूरी तय की थी। वहीं मार्कोनी ने यंत्र का प्रयोग कर 2000 मील तक रेडियो की तरंगों को पहुंचा दिया। इसके बाद मार्कोनी दुनिया में मशहूर हो गए। और बाद में उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया। हालांकि बोस ने कभी अपने आविष्कार को लेकर किसी तरह का पेटेंट नहीं करवाया था।