इंदौर, कुछ आयोजन सीधे सीधे दर्शकों के दिल में उतर जाते हैं। भारतीय पत्रकारिता महोत्सव के सांस्कृतिक आयोजन के अंतर्गत देश के आम आदमी के दर्द के सर्वश्रेष्ठ चितेरे शैलेंद्र के गीतों और जीवन के सफर पर आधारित कार्यक्रम-
अवाम का गीतकार- शैलेन्द्र एक ऐसा ही आयोजन था।
इसमें वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल ने जहां संवाद और रोचक तथ्यों से शैलेन्द्र के जीवन के विभिन्न पहलू दिखाए, वहीं उनके पारिवारिक मित्र हरिवंश चतुर्वेदी ने गीतों से जुडी बातें बताईं।
शैलेन्द्र के गीत बहुत जनप्रिय हैं और इसीलिए जब गायक आलोक बाजपेयी ने उनकी भावप्रवण प्रस्तुति दी तो सारा सभागार आनंद सागर में खो गया।
स्टेट प्रेस क्लब के प्रतिष्ठा आयोजन तीन दिवसीय भारतीय पत्रकारिता महोत्सव के अंतर्गत रवींद्र नाट्यगृह में शैलेन्द्र के गीतों और उनके सफ़रनामे को इस कदर खूबसूरती के साथ पिरोकर प्रस्तुत किया गया कि दर्शक कभी मिलने वाली जानकारियों से आश्चर्य में डूबते तो कभी गानों के रस में खो जाते।
राज्यसभा टीवी के संस्थापक संपादक राजेश बादल ने अपने वृत्त चित्र के अंशों और अपने शोध के आधार पर गीतकार शैलेन्द्र के कई अनछुए पहलुओं को उजागर किया।
जैसे, शैलेन्द्र जी को अपनी प्रथम संतान के जन्म के समय यदि पैसों की तंगी ना होती तो सम्भवतः वे फ़िल्मों में आते ही ना, क्योंकि राजकपूर को वे पहले गीत लिखन से मना कर चुके थे। यह भी कि शैलेन्द्र बहुत अच्छे हॉकी प्लेयर थे और उनके मूल शहर मथुरा में जातीय भेदभाव से आहत होकर उन्होंने अपनी हॉकी अपने ही घुटनों से तोड़कर मुंबई की राह पकड़ी थी।
वहीं दिल्ली से आए हरिवंश चतुर्वेदी ने शैलेन्द्र के पारिवारिक जीवन, गीतों और शैलेन्द्र की कुछ खास बातें बताईं, जैसे कि वे इतने अच्छे डफली वादक थे कि राजकपूर स्वयं उनसे डफली सीखना चाहते थे।
इन रोचक तथ्यों के बीच बहुविध संस्कृतिकर्मी आलोक बाजपेयी ने गीतकार शैलेन्द्र के गीतों की प्रस्तुति इस कदर खूबी के साथ दी कि दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए।
श्री बाजपेयी के गायन की एक विलक्षण विशेषता यह है कि वे बहुत सारे गायकों की टोनल क्वालिटी के काफी करीब चले जाते हैं। इस आयोजन में उन्होंने स्व. मुकेश, रफ़ी साहब, मन्ना डे, किशोर दा, तलत मेहमूद और यहां तक कि स्व. एस. डी. बर्मन साहब के गीत भी उनके अंदाज़ में प्रस्तुत कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा लिया।
शैलेन्र्द साहब के गीत यूं भी संगीतप्रेमियों के दिल में बसे हैं, ऐसे में उनकी ईमानदार अभिव्यक्ति से दर्शक बार बार झूम उठे. किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, आवारा हूं, गाता रहे मेरा दिल, वहां कौन है तेरा मुसाफिर, जीना यहां मरना यहां, चाहे कोई मुझे जंगली कहे, तू प्यार का सागर है इत्यादि अलग-अलग मूड के गानों को आलोक बाजपेयी ने कमाल की भावप्रवणता से प्रस्तुत कर दर्शकों का दिल जीत लिया।
लोकरंग के गीत चलत मुसाफिर मोह लियो रे गीत को उन्होंने इंदौर की स्वच्छता से जोड़कर खूब दाद बटोरी। शैलेन्द्र के जनवादी लेखक के स्वरुप को दर्शाते गीत "तू ज़िंदा है तो ज़िंदगी की जीत पर यक़ीन कर" सुनकर दर्शक जोश में भर गए।
अन्नू शर्मा एवं हेमेंद्र महावर के संगीत निर्देशन में की बोर्ड पर विजय देसाई, साइड रिदम पर इंगित भावसार, तबले पर रवि वर्मा, ढ़ोलक कांगो पर हेमेंद्र महावर, लीड गिटार पर विकास जैन एवं बेस गिटार पर हिमांशु वर्मा ने शानदार संगति की। कलाकारों का स्वागत सह आयोजक मंजीत सिंह खालसा, स्टेट प्रेस क्लब के अध्यक्ष प्रवीण खारीवाल, अभिषेक गावड़े एवं संजीव आचार्य ने किया।
कार्यक्रम का प्रभावी संचालन ग्वालियर से पधारे वरिष्ठ पत्रकार राकेश पाठक ने किया। कुल मिलाकर शैलेन्द्र के व्यक्तित्व एवं गीतों को बखूबी प्रस्तुत करने में सफल ये आयोजन संगीत प्रेमियों को लम्बे समय तक याद रहेगा।