शुक्रवार, 22 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. »
  3. वेबदुनिया विशेष 07
  4. »
  5. गणतंत्र दिवस
Written By ND

पं. दीनदयाल उपाध्याय की डायरी

जनतंत्र में सत्ता के प्रति उच्च स्तर की निरासक्ति आवश्यक

पं. दीनदयाल उपाध्याय की डायरी -
ND
'वे लोग भी, जो इस विद्वान डीन की तरह अनभिज्ञ नहीं हैं, भारत-पाक समस्याओं को हिन्दू और मुस्लिम की दृष्टि से ही देखते हैं। 'न्यूयॉर्क टाइम्स' का एक स्तंभ लेखक 'हिन्दू' विशेषण जोड़े बिना भारत का उल्लेख नहीं कर सकता। वह हमेशा 'हिन्दू भारत' और 'मुस्लिम पाकिस्तान' लिखता है, खासकर कश्मीर के विषय में लिखते समय।

मैंने उसके संपादकीय विभाग के एक सदस्य से इस परंपरा के बारे में प्रश्न किया कि क्या वे जानते हैं कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, और वहाँ साढ़े चार करोड़ मुसलमान रहते हैं। उस सदस्य ने कहा कि 'हाँ, हम जानते हैं कि भारत में मुसलमान रहते हैं, परंतु उससे क्या? आपका देश निस्संदिग्ध रूप से वैसा ही एक हिन्दू देश है, जैसा पाकिस्तान एक मुस्लिम देश है।'

मुझे यह बात याद हो आई कि भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस ने हमेशा इससे इंकार किया कि वह एक हिन्दू संगठन है और उसने हमेशा मुस्लिम लीग को उसके मुस्लिमों का एकमात्र प्रतिनिधित्व करने के दावे को चुनौती दी। अपने इस कथन की पुष्टि के लिए उसने मुसलमानों को प्रसन्न करने के लिए न्यायोचित हिन्दू-हितों की उपेक्षा तक की, परंतु अँग्रेजों ने काँग्रेस को हमेशा एक हिन्दू संगठन और मुस्लिम लीग को मुसलमान संगठन के रूप में मान्य किया। पुराना इतिहास अपने को फिर से दुहरा रहा है।

भारत यह दिखाने के लिए कि वह हिन्दूदेश नहीं है, चाहे जो करे, विश्व उस पर विश्वास नहीं करेगा। पाकिस्तान भी चाहे जितना इस्लामरहित बने, विश्व उसे हमेशा मुसलमानों का एक प्रतिनिधि देश मानेगा। अमेरिका में ऐसे बहुत से लोग थे, जिन्हें यह ज्ञात नहीं था कि श्री चागला, जो अमेरिका में भारत के राजदूत थे, मुसलमान हैं और जब उनको यह बताया गया तो उन्हें इस पर विश्वास नहीं हुआ और जो लोग इसे जानते थे, वे भी यह मान्य करने को तैयार नहीं थे कि केवल इसी कारण भारत हिन्द राष्ट्र नहीं है।
  'वे लोग भी, जो इस विद्वान डीन की तरह अनभिज्ञ नहीं हैं, भारत-पाक समस्याओं को हिन्दू और मुस्लिम की दृष्टि से ही देखते हैं। 'न्यूयॉर्क टाइम्स' का एक स्तंभ लेखक 'हिन्दू' विशेषण जोड़े बिना भारत का उल्लेख नहीं कर सकता।      


जब मैंने इस विषय पर एक अन्य प्रोफेसर से चर्चा की तब उन्होंने मुझसे कहा और मैं समझता हूँ कि ठीक ही कहा कि मुसलमानों को भारत में रहने देने में और उनमें योग्य व्यक्तियों को विभिन्न कामों के लिए चुनने में कोई गलती नहीं है। उन्होंने कहा कि जब खास-खास पदों के लिए विदेशी नागरिकों को नियुक्त किया जा सकता है, तो अगर आपने अपने ही नागरिकों को नियुक्त किया तो उसमें गलत क्या है। किंतु उन्होंने यह भी कहा कि 'चागला ने अगर हिन्दू भारत का प्रतिनिधित्व नहीं किया तो और किसका प्रतिनिधित्व किया?'

और यह भी कि 'कुछ समय के लिए लार्ड माउंटबेटन को गवर्नर-जनरल रखकर भारत अँग्रेजों का देश तो नहीं बन गया?' मैंने उनसे कहा कि यह तुलना सही नहीं है। भारत के मुसलमान अन्य देशी नहीं हैं। उन्होंने कहा कि 'मैं यह बात मानता हूँ परंतु जब तक भारत और पाकिस्तान मिलकर फिर से एक नहीं हो जाते, वे हिन्दू और मुस्लिम देश बने रहेंगे।' मुझे प्रसन्नता हुई कि कम से कम ऐसे व्यक्ति से तो मेरी भेंट हुई जो 'अखंड भारत' को असंभव नहीं मानता। यह आश्चर्य की ही बात है कि जब काँग्रेसी नेता अखंड भारत का विरोध करते हैं, तब वे अपने रुख की सुस्पष्ट विसंगति को नहीं देख पाते। विभाजन और धर्मनिरपेक्षता में कोई मेल नहीं

* * *

जनतंत्र में सत्ता के प्रति उच्च स्तर की निरासक्ति आवश्यक है। भगवान राम की तरह, जनतंत्र में राजनीतिज्ञ को, आह्वान मिलने पर सत्ता स्वीकार करने और क्षति की चिंता किए बिना उसका परित्याग कर देने के लिए भी सदा तैयार रहना चाहिए।

एक खिलाड़ी की तरह उसे विजय के लिएसंघर्ष करना चाहिए, किंतु पराजय के लिए भी तैयार रहना चाहिए। अगर वह पराजय को गौरव के साथ नहीं शिरोधार्य कर सकता और अपने प्रतिस्पर्द्धी को उसकी विजय के लिए बधाई नहीं दे सकता, तो वह जनतंत्रवादी नहीं है। यही वह भावना थी, जिसके साथ चर्चिल ने एटली को और एटली ने एडेन को सत्ता सौंप दी। पर भारत में हमें क्या दिखाई देता है।