इससे काँग्रेस की कार्यसमिति को महसूस हुआ कि अगर सम्मानपूर्वक संधि हो सकती है और किसी भी शर्त या काट-छाँट के बिना पूर्ण स्वराज्य की माँग करने का काँग्रेस का हक माना जाता हो, तो काँग्रेस गोलमेज परिषद में जाने का निमंत्रण स्वीकार कर ले और ऐसा विधान तैयार करने के प्रयत्न में सहयोग दे, जिसे सब दल स्वीकार कर सकें। अगर इस प्रयत्न में हम असफल हो जाएँ और तपश्चर्या के मार्ग के सिवाय दूसरा कोई रास्ता न रहे, तो उस पर जाने से हमें रोकने वाली कोई भी शक्ति पृथ्वी पर नहीं है।
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