धर्मशास्त्रों में पितरों का महत्व
पितरों की पूजा-अर्चना से होगा कल्याण
अपने धर्मोंपदेशों में पं. मोहन भट्ट शास्त्री ने कहा कि आदि शक्ति दुर्गा को स्वाहा-स्वधा नमोस्तुते कहते हुए की गई पूजा-अर्चना से देवता और पितर दोनों ही प्रसन्न होते हैं। उन्होंने कहा पितृ पक्ष में पंद्रह दिनों तक जो लोग शिव और भक्ति की आराधना करते हुए अपने पूर्वजों का तर्पण श्राद्ध आदि करते है उन्हें कभी भी अशांति नहीं होती। यदि पितरों का पुण्य स्मरण किए बिना कोई नवरात्रि में देवी शक्ति की उपासना तथा दीपावली में महालक्ष्मी की आराधना करता है तो वह प्रायः पूर्ण नहीं मानी जाती है। इसीलिए हमारे धर्मशास्त्रों में जितना महत्व देवी-देवताओं का बताया है उससे कहीं अधिक महत्व पितरों का होता है। उन्होंने कहा कि भक्ति में ही शक्ति है, लेकिन विनम्रतापूर्वक शास्त्रों का अध्ययन करने के साथ-साथ यदि सेवा भी चलती रहे तो वह विद्या इस लोक और अगले जीवन में भी सुख प्रदान करती है। सेवा भक्ति पर हनुमान जी का उदाहरण देते हुए कहा कि जितनी बाधाओं से श्री हनुमान जी टकराए, पुराण इतिहास में शायद कोई और टकराया हो।
उन्होंने कहा पाताल लोक में अहिरावण की कैद से राम-लक्ष्मण को छु़ड़ाकर लाना तथा अहिरावण का संहार करना यह घटना ऐसी है कि हनुमान जी आज भी संसार के दुःखी एवं त्रसित लोगों के संकट मुक्ति के अमोघ मंत्र बने हुए हैं। इसीलिए गोस्वामी तुलसी जी हमारे प्रतिनिधि के रूप में हनुमान जी से कहते हैं- 'कौन सो संकट मोर गरीब को जो तुम सो नहि-जात है टारो, वेगि हरो हनुमान महाप्रभु-जो कुछ संकट होय हमारो।' इसी प्रकार नवरात्रि की आराधना के पूर्व हमें श्राद्ध कर्म अवश्य करना चाहिए। ताकि हम अपने पितरों को तृप्त कर सकें और उनका आशीर्वाद पाकर आने वाले समय में हम अपना कल्याण कर सकें। अपने धर्मोंपदेश के दौरान पंडितजी ने कहा कि हमें हनुमान की राम भक्ति को ध्यान में रखकर अपने पितरों के मोक्ष प्राप्ति की भक्ति का ध्यान रख कर श्राद्ध कर्म को महत्व देना चाहिए।