स्वामी श्रद्धानंद कौन थे, जानें बलिदान की कहानी
Swami shraddhanand balidan diwas: 23 दिसम्बर को स्वामी श्रद्धानंद बलिदान दिवस मनाया जाता है। मारे कई संत थे जिन्होंने सामाजिक उत्थान और आंदोलन के साथ ही धर्म और देश के लिए अपनी जान दे दी। उन्हीं में से एक नाम है स्वामी श्रद्धानंद। कौन थे स्वामी श्रद्धानंद और क्या था उनका देश और धर्म के प्रति योगदान? आओ जानते हैं संक्षिप्त में।
स्वामी श्रद्धानंद:-
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स्वामी श्रद्धानंद का जन्म 22 फरवरी 1856 को पंजाब के जालंधर में हुआ था।
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उनका निर्वाण 23 दिसंबर 1926 के दिन हुआ था।
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23 दिसंबर को स्वामी श्रद्धानंद जी की हत्या कर दी गई थी।
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स्वामी श्रद्धानंद का मूल नाम मुंशीराम था। वे भारत के महान राष्ट्रभक्त संन्यासियों में अग्रणी थे।
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स्वामी श्रद्धानंद ने देश को अंग्रेजों की दासता से छुटकारा दिलाने और दलितों को उनका अधिकार दिलाने के लिए अनेक कार्य किए।
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पश्चिमी शिक्षा की जगह उन्होंने वैदिक शिक्षा प्रणाली पर जोर दिया।
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इनके गुरु स्वामी दयानंद सरस्वती थे। उन्हीं से प्रेरणा लेकर स्वामीजी ने आजादी और वैदिक प्रचार का प्रचंड रूप में आंदोलन खड़ा कर दिया था।
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स्वामी जी ने इसी के साथ ही शुद्धि आंदोलन भी चलाया था जिसके चलते हजारों मुसलमान और ईसाईयों ने घर वापसी की थी।
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उनके इन्हीं सब कार्यों के चलते उनकी गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई थी।
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कहते हैं कि 23 दिसंबर 1926 को अब्दुल रशीद नाम के एक कट्टरपंथी ने उनकी हत्या कर दी थी।
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यह हत्यारा धर्म चर्चा के नाम पर स्वामी जी से मिलने गया था।
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धर्म-चर्चा के बहाने उनके कक्ष में प्रवेश करके उसने गोली मार दी थी।
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कहते हैं कि उस वक्त महात्मा गांधी ने हत्यारे का पक्ष लिया था।
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय:
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धर्म, देश, संस्कृति, शिक्षा और दलितों का उत्थान करने वाले युगधर्मी महापुरुष श्रद्धानंद के विचार आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं। उनके विचारों के अनुसार स्वदेश, स्व-संस्कृति, स्व-समाज, स्व-भाषा, स्व-शिक्षा, नारी कल्याण, दलितोत्थान, वेदोत्थान, धर्मोत्थान को महत्व दिए जाने की जरूरत है इसीलिए वर्ष 1901 में स्वामी श्रद्धानंद ने अंग्रेजों द्वारा जारी शिक्षा पद्धति के स्थान पर वैदिक धर्म तथा भारतीयता की शिक्षा देने वाले संस्थान 'गुरुकुल' की स्थापना की। हरिद्वार के कांगड़ी गांव में 'गुरुकुल विद्यालय' खोला गया जिसे आज 'गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय' नाम से जाना जाता है।
भारत में आजादी के आंदोलन में नरम दल और गरम दल से जुड़े नेताओं को ही स्वतंत्रता दिवस पर याद किया जाता है परंतु यह बहुत कम ही लोग जानते हैं कि आजादी की अलख जनाने वाले हमारे कई संत थे जिन्होंने सामाजिक उत्थान और आंदोलन के साथ ही स्वतंत्रता आदोलन में भी अपना योगदान दिया है।