घर वापसी अभियान क्या है?
Ghar wapsi to hinduism 2023 : आजकल यह शब्द सुनने और पढ़ने में बहुत आता है- घर वापसी। आखिर क्या है घर वापसी अभियान? कौन लोग घर वापसी करते हैं और कौन लोग यह अभियान चला रहे हैं या चलाते हैं? ऐसे कई सवाल लोगों के मन में हो सकते हैं। आओ जानते हैं इसके संबंध में संक्षिप्त में।
घर वापसी अभियान क्या है?:
ऐसा कहते हैं कि कट्टरता के दौर में वर्तमान में जहां ईसाई, मुस्लिम या बौद्ध धर्म के अनुयायी लोग हिन्दू समाज के लोगों को धर्मांतरित करके अपने धर्म में मिला लेते हैं तो इससे समाज में एक प्रकार का असंतोष और द्वेष फैल जाता है। ऐसे में हिन्दू संगठन के लोग 'घर वापसी अभियान' चलाकर पुन: इन लोगों को हिन्दू धर्म में शामिल करते हैं।
यह भी कहा जाता है कि मुगल और अंग्रेज काल में लाखों हिन्दुओं को मुसलमान और ईसाई बनाया गया था। यह वह वक्त था जबकि हिन्दुओं को जबरन या जजिया कर के माध्यम से मुसलमान बनाया जाता था जबकि अंग्रेजों के काल में लालच के माध्यम से ऐसा किए जाने की बात कही जाती है। ऐसे में वे जो जिनके पूर्वज कभी हिन्दू थे उनमें से जो भी लोग पुन: अपने धर्म में आना चाहते हैं तो उनके लिए 'घर वापसी अभियान' एक ऐसा माध्यम है जबकि वे पुन: अपने कुलधर्म में आकर भूल सुधार लेते हैं।
'घर आपसी अभियान' सिर्फ उन मुस्लिम और ईसाइयों के लिए होता है जो स्वेच्छा से पुन: अपने धर्म को अपनाना चाहते हैं। अगर कोई अपने मौजूदा धर्म को लेकर कट्टर है, तो उसकी घर वापसी की कोशिश नहीं की जाती है।
शुद्धिकरण : जब तय हो जाता है कि कोई परिवार या व्यक्ति पुन: अपने कुल का धर्म अपनाना चाहता है तो एक हवन का आयोजन होता है। इसमें गायत्री मंत्र और शुद्धिकरण मंत्र के साथ घर वापसी होती है और उन्हें नया नाम दिया जाता है। इस दौरान व्यक्ति को गंगाजल पिलाकर, जनेऊ पहनाकर उसके पैर धोकर उसकी हिंदू धर्म में घर वापसी की घोषणा की जाती है।
भारत में रहने वाला हर व्यक्ति हिन्दू : हिन्दू संगठनों का और धर्माचार्यों का मानना है कि भारत में रहने वाला हर व्यक्ति हिन्दू है, भले ही कोई मुसलमान या ईसाई हो, क्योंकि यह सभी जानते हैं कि इनके पूर्वजों ने किसी कारणवश मजबूरी में पश्चिमी धर्म को अपना लिया था और अब जरूरत है कि वे पुन: अपने धर्म में आकर अपने पूर्वजों का सम्मान करें।
इतिहास : घर वापसी का अभियान सबसे पहले आर्य समाज के स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने प्रारंभ किया था। इसके बाद कई हिन्दू संगठनों ने उनके कार्य को जारी रखा। पहले इसे शुद्धि आंदोलन के नाम से जाना जाता था। सबसे पहली शुद्धिकरण स्वामी दयानन्द जी ने अपने देहरादून प्रवास के समय एक मुसलमान युवक की की थी जिसका नाम 'अलखधारी' रखा गया था। 11 फरवरी 1923 को स्वामी श्रद्धानन्द ने 'भारतीय शुद्धि सभा' की स्थापना की और शुद्धि का कार्य आरम्भ किया था।