संतों को लड़ाती सरकार
संतों ने दी आत्मदाह की घोषणा
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महेश पाण्डे होली बीत चुकी है और धूप तीखी लगने लगी है। मौसम गर्मी के आने का अहसास करा रहा है। वहीं कलकल बहती शीतल गंगा की नगरी कुंभ का मौसम भी असली और नकली शंकराचार्य की तकरार से लगातार गरम होता जा रहा है। मामले ने तूल पकड़ लिया है और दूसरे शाही स्नान से पहले चार पीठों के चार शंकराचार्यों का कुंभनगरी में निर्विघ्न आगमन भी इस विवाद की चपेट में आने से खतरे में दिखाई पड़ रहा है। इस पूरे पचड़े में नहीं पड़ने को कृतसंकल्प दिख रहे प्रशासन ने अब तक तटस्थ भूमिका अपना रखी है तो दूसरी ओर संतगण इस विवाद के पीछे प्रशासन की भूमिका को ही सबसे बड़ा प्रेरक मान रहे हैं क्योंकि असल में विवाद की जड़ में साधु-संतों के लिए किया गया भूमि-आवंटन है। उल्लेखनीय है कि इस आवंटन के क्रम में कुछ ऐसे कार्य प्रशासन ने किए हैं जिसने संतों की भावनाओं को आहत किया है। यूँ तो संतों को विभिन्न गंगाद्वीपों में भूखंड आवंटित कर इनके नाम महामंडलेश्वरनगर, शंकराचार्यनगर, बैरागीद्वीप आदि रखे गए हैं लेकिन महामंडलेश्वनगर में महामंडलेश्वरों के साथ-साथ कथित तौर पर आम संतों को भी जमीन मुहैया करा दी गई है तो दूसरी ओर शंकराचार्य नगर में चार पीठों के शंकराचार्यों सहित कुछ अन्य स्वयंभू शंकराचार्यों को भी जमीन आवंटित कर दी गई है। मसलन, ज्योतिर्पीठ एवं गोवर्धनपीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद बगल में सुमेरुपीठ के स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती को जमीन आवंटित कर दी गई है। स्वरूपानंद के प्रतिनिधियों एवं भक्तों का कहना है कि जब सुमेरुपीठ का कहीं अस्तित्व ही नहीं है तो असली शंकराचार्य स्वरूपानंद की बगल में इस विवादित शंकराचार्य को प्रशासन ने जमीन क्यों आवंटित की है ? इस प्रकार प्रशासन असली शंकराचार्य की अवहेलना करते हुए नकली शंकराचार्य को मान्यता प्रदान करने का कुचक्र रच रहा है। जबकि मेला अधिष्ठान इस मामले में पहले ही कर चुके भूमि आवंटन को खत्म करने में स्वयं को असमर्थ बता रहा है हालाँकि प्रशासन आइंदा इस तरह की भूल नहीं करने का वायदा करता जरूर नजर आ रहा है।
प्रशासन की तरह ही अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के पदाधिकारी भी इस मुद्दे से खुद को दूर ही रखने की कोशिश में लगे हैं हालाँकि अधिसंख्य संत यह तो स्वीकार करते ही हैं कि स्वयंभू शंकराचार्यों के कारण आस्थावान हिंदुओं की भावनाएँ आहत होती हैं। वहीं कुछ संत विवाद पैदा होने के समय को उचित नहीं मान रहे हैं। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के श्रीमहंत स्वामी हरिगिरि महाराज भी उनमें एक हैं। उन्होंने अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद को इस विवाद से दूर बताते हुए कहा, 'जब तक परिषद की आम बैठक में इस विषय पर कोई प्रस्ताव पारित नहीं हो जाता इस संबंध में किसी भी तरह की राय संतों की निजी राय ही मानी जाएगी ।' उनके अनुसार, 'इस वक्त कुंभ का सकुशल निर्वहन ही उनकी प्राथमिकता है। कुंभ के बाद ही यह विवाद निपटाना ठीक होगा। इस विवाद को इस वक्त हवा देना ठीक नहीं है ।' इधर जबकि कई संतों ने - जिनमें पाँच अखाड़ों के बारह संत शामिल हैं - स्वामी स्वरूपानंद के शिविर छोड़ने की स्थिति में आत्मदाह कर लेने की घोषणा की है। संत समाज द्वारा इस आत्मदाह की घोषणा की व्यापक निंदा किए जाने के बावजूद स्वामी स्वरूपानंद के अनुयायी टस से मस नहीं होते दिख रहे हैं। हरिद्वार में गंगा सेवा अभियान को देखने वाले स्वामी स्वरूपानंद के प्रतिनिधि अवमुक्तेश्वरानंद ने हालांकि स्पष्ट तौर पर कहा है कि इस मामले में किसी भी प्रकार का अतिवादी कदम उठाए बगैर स्वामी स्वरूपानंद के शिष्य स्वयंभू शंकराचार्यों को कुंभ क्षेत्र से बाहर करने के लिए अहिंसात्मक आंदोलन चलाएंगे और यदि इस पर भी मामला नहीं सुलझा तो वे और उनके संतगण कुंभनगरी छोड़ जाएंगे पर हिंसात्मक रास्ता अख्तियार नहीं करेंगे। फिर भी उनके कई अनुयायी आत्मदाह कर लेने की धमकियों से बाज नहीं आ रहे हैं। मामले की गंभीरता देखते हुए संन्यासी परिषद ने इस मामले में बैठक कर प्रशासन से स्वयंभू शंकराचार्यों को कुंभनगरी से या तो बाहर करने को कहा है या फिर यह सुझाव दिया है कि यदि ये स्वयंभू शंकराचार्य अपने नाम से शंकराचार्य शब्द हटा लेते हैं तो विवाद स्वतः ही खत्म हो जाएगा। इधर प्रशासन इस विवाद से खुद को अलग दिखाने की कोशिशों के तहत कोई भी कार्रवाई करता दिखाई नहीं पड़ रहा है और न ही स्वयंभू शंकराचार्य ही टस से मस होते दिख रहे हैं। वे शंकराचार्य शब्द का प्रयोग नहीं किए जाने की संतों के प्रतिनिधियों की अपील के जवाब में धर्म संसद बुलाकर असली शंकराचार्यों को अपने संग शास्त्रार्थ करने की चुनौती दे रहे हैं। विवादों में सुर्खी बने सुमेरुपीठ के शंकराचार्य होने का दावा करने वाले नरेंद्रानंद सरस्वती ने तो स्वामी स्वरूपानंद को शास्त्रार्थ की चुनौती देते हुए यह भी कह दिया है कि 95 वर्ष की आयु में वे इस तरह की लड़ाई लड़ने के बजाय अपने शिष्य को अपना उत्तराधिकारी घोषित करें। मात्र सदन के स्वामी शिवानंद इस विवाद में सर्वाधिक आक्रामक रुख अपनाए हुए हैं। उनका कहना है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने चार पीठ ही बनाए थे। इनमें चार ही शंकराचार्य आदि काल से चले आ रहे हैं। ऐसे में इन चार पीठों के अलावा किसी अन्य पीठ या उपपीठ की घोषणा करना हिंदू धर्म का ही नहीं पूरे समाज का मखौल उड़ना है। वह कहते हैं कि काशी स्थित धर्ममहामंडल ने अपने एक सर्वेक्षण में पाया है कि देश में 102 पीठों व उपपीठों पर स्वयंभू रूप से शंकराचार्य विराजमान हैं तो मात्र सदन का सर्वे 138 पीठों-उपपीठों की उपस्थिति की बात कहता है। इन पीठों-उपपीठों से 36 स्वयंभू शंकराचार्य कुंभनगरी में उपस्थित हैं। शेष शंकराचार्य भी इस शाही स्नान से पूर्व तक यहाँ पहुँच जाएँगे, ऐसा माना जा रहा है। यदि ये सभी यहाँ पहुँचे तो कुंभ में इस विवाद के और तूल पकड़ने की आशंका बनी हुई है। मेला प्रशासन इस विवाद के किसी सर्वमान्य हल की कोशिश करना चाहता है। वह इसके लिए संतों के स्वयं ही सामने आने की बाट जोह रहा है। प्रशासन मामले में हस्तक्षेप से विवाद को बढ़ाकर एक नया सिरदर्द नहीं लेना चाहता है। उधर तमाम प्रकार के संत इस विवाद में बयानबाजी करते नजर आ रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय सनातन धर्म संस्थान के अध्यक्ष स्वामी विद्या चैतन्य व स्वामी अंबरीशानंद महाराज ने एक स्वर में स्वयंभू शंकराचार्यों की उपस्थिति को जनता को भ्रमित करने वाला बताते हुए इसे प्रश्रय न देने का आह्वान किया है। ऐसा नहीं होने की स्थिति में ये संत कुंभ क्षेत्र छोड़ देंगे। इस बीच कांची कामकोटि पीठम तथा श्रृंगेरी पीठ के शंकराचार्यों की कुंभ पहुंचने की अभी तक कोई सूचना नहीं मिली है लेकिन ज्योतिर्पीठ शारदापीठ एवं गोवर्धनपीठ के शंकराचार्यों के कुंभ में पहुंचने की संभावना बताई जा रही है। भले ही आमतौर पर आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित पीठों को ही सर्वमान्य पीठ माना जाता हो या माना जाना चाहिए लेकिन सच्चाई तो यही है कि कुंभक्षेत्र में फिलहाल कभी न सुनी गई पीठों के नामों के साथ तीन दर्जन शंकराचार्य जमे हुए हैं। ऐसे में इस विवाद के दिनोदिन और अधिक गहराने की चिंता लाजमी है। एक तरफ यह विवाद कुंभनगरी में गहराता जा रहा है तो दूसरी तरफ यहाँ शाही स्नान से पूर्व बैरागी संतों का आगमन होने ही वाला है। बैरागियों के छह अखाड़ों में से दो अखाड़ों के रमता पंच बादशाहपुर तक आकर ठहर चुके हैं। इनके पेशवाई कार्यक्रम की तैयारियाँ चल रही हैं। बैरागी अखाड़े वृंदावन से कुंभनगरी का रुख कर चुके हैं। इस बीच असली-नकली शंकराचार्य विवाद से चल रही ऊहापोह का असर कुंभ पर न पड़ जाए इसकी चिंता मेला अधिष्ठान समेत संतों को भी व्यग्र किए हुए है। पहले शाही स्नान के समय संतों की संख्या से ज्यादा गृहस्थों की उपस्थिति और शाही स्नान में साधु-संतों के साथ नहाने से भी संतों को परेशानी हुई और यह भी विवाद का विषय बना। जूना अखाड़े में तो ये गृहस्थ फिर भी कम थे पर निरंजनी व महानिर्वाणी में इनकी संख्या बहुत थी। अब यह प्रश्न भी कुंभनगरी के श्रद्धालुओं के बीच आम बनता जा रहा है कि क्या इस बार दूसरे शाही स्नान में भी जोगियों के साथ आम लोगों की जमात स्नान करेगी और सदियों से चली आ रही इस परंपरा का उपहास उड़ाया जाएगा कि साधुओं को गृहस्थ निर्विघ्न स्नान का मौका दें ? इतना तो तय है भक्तों से मिल रही भेंटों के कारण सम्मिलित स्नान के प्रति सहिष्णु रवैया अपनाने वाले साधु-संतों और प्रशासन की मिलीभगत से सनातन परंपरा का उपहास होने पर तमाम श्रद्धालुगण नाखुश हैं।