महाकुंभ में कई तरह की परंपराएँ
- महेश पाण्डे
दुनियाभर के लोगों को पुण्य का लाभ देने वाला महाकुम्भ हरिद्वार, रुड़की और लक्सर के लोगों के लिए मुसीबत का सबब बन गया है। कुम्भ यात्रियों के लिए की गई यातायात व्यवस्था के चक्रव्यूह में जिले के लोगों के भी फँस जाने से लोगों को अपने घरों से काम पर जाने में भी पसीने छूटे। पुलिस की हठधर्मिता व वाहनों के प्रतिबंध के कारण स्थानीय लोग घरों में ही कैद होकर रह गए। शाही स्नान में कई तरह की परंपराएँ भी दिखीं। हरिद्वार में दूसरे शाही स्नान में जहाँ श्रद्धालुओं का जनसैलाब स्नान को उत्सुक दिखा, वहीं कई तरह-तरह की परंपराएँ भी दिखीं। पहले सभी अखाड़ों ने गंगा को तिलक किया, फिर स्नान शुरू किया। कुंभ के लिए भगवान की झाँकियों को लेकर चल रहे अखाड़ों की इन्हीं झाँकियों के पीछे कतारबद्ध होकर चलने से यह सवारी शाही सवारी और इन ईष्ट देव को पहले स्नान कराकर फिर स्नान करने को शाही स्नान कहा जाता है। इसके लिए मान्यता है कि सभी तीर्थ इस मौके पर गंगा तट पर यानि हरिद्वार में एकत्रित हुए हैं। इस मौके का स्नान इसी कारण अमृतपान के समान एवं इसका पुण्य कई अश्वमेघ यज्ञों एवं गोदानों के समान माना जाता है। स्नान में हजारों नागा साधु जो इसी कुम्भ में नागा पद से विभूषित हुए भी स्नान करते दिखे। जूना अखाड़े ने लगभग 3 हजार और अन्य अखाड़ों ने लगभग 2 हजार नागा संन्यासी बनाए। पाँच हजार नागाओं ने स्नान कर पुण्य लाभ लिया।
कुंभनगरी में 760 साल बाद पड़ी दुर्लभ सोमवती अमावस्या का स्नान तेरहों अखाड़ों सहित देशभर से आए लाखों श्रद्धालुओं ने कर हजारों अश्वमेघ यज्ञों के फल के बराबर पुण्य अर्जित किया। तेरहों अखाड़ों की दिव्य पेशवाईयों के साथ ही दो शंकराचार्य जिनमें ज्योतिर्पीठ एवं शारदापीठ के स्वामी स्वरूपानंद एवं गोवर्धन पीठ के स्वामी निश्चलानंद ने भी गंगा के वीआईपी घाट में एक साथ वैदिक मंत्रोच्चार के साथ अपने भक्तों को साथ लेकर स्नान किया। दोनों शंकराचार्यों का यह युगल स्नान भी कुंभ काल में इतिहास दर्ज करा गया। सोमवती अमावस्या के साथ ही शाही स्नान वह भी कुम्भ काल का पर्व इस मौके पर गंगा में डुबकी का आनंद आध्यात्मिक गुरूओं ने भी लिया।