कुंभ मेले में साधुओं से क्यों आकर्षित होते हैं विदेशी
- आलोक त्रिपाठी
प्रयाग में लगे पूर्ण कुंभ में नित बढ़ रहे विदेशी पर्यटक श्रद्धालुओं की संख्या भारतीय लोगों को खासा आकर्षित कर रही हैं, ना सिर्फ पर्यटक बल्कि विदेशियों की हिन्दू शंकराचार्यों के प्रति बढ़ रही श्रद्धा भी लोगों को गंभीर संदेश दे रही है।विदेशियों का हिन्दू संस्कृति के प्रति बढ़ रहे रुझान पर कई अर्थ निकाले जा सकते हैं। सबसे पहले यह तथ्य पूरे विश्व को आकर्षित करता है कि हिन्दू संस्कृति नित्य नूतन और चिर पुरातन है। इस धर्म में कभी किसी को नुकसान देने की बात नहीं की गई है।सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस संस्कृति में बेरोजगारी को कहीं भी स्थान नहीं दिया गया है क्योंकि यहां हर किसी को अपनी योग्यता के अनुसार रोजगार प्राप्त करने के अवसर दिए गए हैं। भारतीय संस्कृति उदारवादी तो रही है, लेकिन इसमें उधारवाद को कहीं भी रंच मात्र का स्थान नहीं दिया गया है। यही तथ्य विदेशियों को भी भा रहा है।एक ओर जहां पूरा यूरोप और अमेरिका का अधिकतर क्षेत्र आर्थिकमंदी से गुजर रहा है, वहीं दूसरी ओर भारत अपनी योग्य अर्थनीति के सहयोग से पूरे विश्व के नौजवानों को रोजगार देने का दंभ भर रहा है।यही सबसे बड़ा कारण है कि विदेशी युवा भी हमारे शंकराचार्यों से जुड़कर उनसे दीक्षा प्राप्त करके रोजगार प्राप्त कर रहे हैं। उन्हें एक तथ्य समझ में आ गया है कि जो सुख वैराग्य और सन्यास में मिलता है, वो किसी मल्टीनेशनल कंपनी में नहीं मिल सकती है। कुंभ 2013 में लगभग 1260 विदेशियों ने संतों की शरण ली है। उनमें लगभग 900 विदेशी 25 से 30 वर्ष के नौजवान हैं।