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Written By WD

कुतुब मीनार इल्तुमिश और कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनाया इसका प्रमाण उपलब्ध नहीं, RTI से 9 वर्ष पहले हुआ था खुलासा

कुतुब मीनार इल्तुमिश और कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनाया इसका प्रमाण उपलब्ध नहीं, RTI से 9 वर्ष पहले हुआ था खुलासा - qutub minar
- अथर्व पंवार 
आजकल क़ुतुब मीनार काफी प्रचलन में है। दावे किए जा रहे हैं कि यह सम्राट चन्द्रगुप्त (द्वितीय) विक्रमादित्य के नौरत्नों में से एक वराहमिहिर ने बनवाया था और इसका नाम विष्णुस्तंभ है। क़ुतुब मीनार परिसर में पुरातत्व बोर्ड पर स्पष्ट लिखा हुआ है कि यह जैन और हिन्दू मंदिरों को तोड़कर बनाया गया है। मीनार के प्रांगण में फैली खंडित मूर्तियां और स्तम्भ इसका प्रमाण दर्शाते हैं।
 
हमने बचपन से पढ़ा है कि क़ुतुब मीनार क़ुतुबुद्दीन ऐबक और इल्तुमिश द्वारा बनवाया गया था। पर 2012 में की गई RTI से इस तथ्य को संदेह और अप्रमाणिक होने के घेरे में डाल दिया था।
 
एक इतिहास के शोधार्थी नीरज अत्रि ने आज से 10 वर्ष पहले सूचना के अधिकार का उपयोग करते हुए 28 नवम्बर 2012 को एक RTI के द्वारा यह मुद्दा उठाया था कि कक्षा 7वी की NCERT की इतिहास की पुस्तक में चित्र 2 के माध्यम से लिखा गया है कि यह मीनार दो सुल्तान-क़ुतुबुद्दीन ऐबक और इल्तुमिश ने बनवाई थी। इस पर नीरज अत्रि ने NCERT से रिकॉर्ड के आधार पर प्रश्न 1 और 2 में उत्तर मांगे थे कि क्या ऐसे प्रमाण है जिससे यह साबित हो सके कि यह मीनार उपरोक्त लोगों द्वारा बनवाया गया हो।

इस पर NCERT ने 1 जनवरी 2013 को नीरज अत्रि को इसका जवाब दिया। जिसमें उन्होंने प्रश्न 1 और 2 के उत्तर में स्पष्ट लिखा था कि उनके डिपार्टमेंट में इस जानकारी की कोई प्रामाणिक प्रति उपलब्ध नहीं है। 
 
देश के प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान से ऐसा उत्तर मिलना अपेक्षा से विपरीत था। इससे प्रश्न भी उठे थे कि जब संस्थान के पास प्रामाणिक प्रति नहीं थी तो किस आधार पर ऐसे तथ्य पढ़ाए जाते आ रहे थे?
 
अगर इतिहास में यह बातें आरम्भ से ही उचित प्रमाणों के साथ लिखी गई होती तो ऐसे विवादों से देश बच सकता था। बार बार इतिहासकार, शोधार्थी, इतिहास में रूचि रखने वाले और शिक्षाविद यह कहते नज़र आते हैं कि कुछ स्थानों पर भारत का इतिहास अस्पष्ट तथ्यों और अप्रमाणों की नींव पर लिखा और पढ़ाया गया है। इसीलिए वह इतिहास के पुनर्लेखन की मांग करते रहते हैं। 2020 में बनी नई शिक्षा नीति से अब लोगों को बड़ी अपेक्षा है। उनका मानना है कि इस नीति के कारण जो बदलाव होंगे उससे हमें सत्य, प्रामाणिक और निष्पक्ष रूप से इतिहास जानने को मिलेगा।
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