बेनजीर भुट्टो की मौत के बाद कई सवाल पैदा हो गए हैं। क्या औरत होने के नाते उन्हें मौत के आगोश में सुना दिया गया या यह महज राजनीतिक रंजिश थी। बहरहाल कारण चाहे जो भी हो। बेनजीर की अपनी मौत से पाकिस्तान ने महिलाओं की आवाज बुलंद करने वाली नेता खो दिया।
बेनजीर राजीव गाँधी की समकक्ष नेता थीं और उनमें राजीव की तरह ही दूरदृष्टि थी। पाकिस्तान के साथ ही पूरा भारतीय प्रायद्वीप उनके जाने से आहत हुआ। इस बात से भी उनके जीवट का पता चलता है कि उनके सामने ही उनके पिता को घर से मारने के लिए ले जाया गया। भुट्टो ने इसके बाद भी हिम्मत नहीं हारी और हालात से समझौता नहीं किया।
बेनजीर ने किसी जमाने में अपने पिता के धूर विरोधी रहे राजनेता और उनके पुत्र जरदारी से विवाह किया। यहाँ भी उनकी व्यक्ितगत सोच में राष्ट्र की सोच निहित थी। हालाँकि जरदारी के कारण उन्हें कई आरोपों का सामना करना पड़ा। देश से भी निर्वसित जीवन जीने को मजबूर होना पड़ा़। पाकिस्तान के हालात दिन-ब-दिन बदतर होते जा रहे थे। ऐसे में उन्होंने बेटे-बेटियों को मुल्क से दूर रखना मुनासिब समझा और खुद पाकिस्तान के हालात संभाले के लिए वापस पाकिस्तान का रूख किया। वैसे पाकिस्तान उनके लिए विश्व के दूसरे देशों से कही ज्यादा खतरनाक जगह थी। यहाँ बेनजीर बिल्कुल भी महफूज नहीं थीं। पहले भी उन पर हमले हो चुके थे और वो इस बात से पूरी तौर पर वाकिफ थीं।
हालात के खिलाफ होने के बावजूद भुटटों ने जिम्मेदारी समझी लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था। बेनजीर से ने जाते जाते एक नजीर छोड़ दी। वो वाकई बेनजीर थीं।