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Last Updated : शनिवार, 19 सितम्बर 2020 (15:11 IST)

पुण्‍यति‍थि‍ पर 1965 भारत-पाक युद्ध के हीरो को कि‍या याद

पुण्‍यति‍थि‍ पर 1965 भारत-पाक युद्ध के हीरो को कि‍या याद - Major surendra deo
(दिवंगत मेजर सुरेंद्र देव और अतुल चंद्र कुमार की पुण्यतिथि मनाई)

नागपुर, 1965 भारत पाक युद्ध के हीरो मेजर स्व. सुरेंद्र देव और स्वतंत्रता सेनानी स्व. अतुल चंद्र कुमार की पुण्यतिथि धंतोली पार्क में मनाई गई।

कोविड-19 महामारी के चलते लागू प्रतिबंधों को कारण न्यूनतम उपस्थिति और अन्य निवारक उपायों का पालन करते हुए कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस दौरान उत्तर महाराष्ट्र और गुजरात सुब एरिया, गार्ड्स रेजिमेंटल सेंटर कामठी के सैन्य अधिकारी, दिवंगत मेजर देव के परिवार के सदस्य (पत्नी अनुराधा देव फडनीस, पुत्र अश्विन देव, पौत्र साहिल देव व विवेक फडनीस), सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार सौम्यजीत ठाकुर उपस्थित थे।

मेजर देव 86 लाइट आर्टिलरी रेजिमेंट से थे। 1965 भारत-पाक युद्ध के दौरान भारतीय सेना के ऑपरेशन में वे रेजिमेंट की परंपरा को कायम रखते हुए प्रेरक नेतृत्व और अदम्य सहस का प्रदर्शन करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। इस अवसर पर सेना के जवानों, परिवार के सदस्यों और सामाजिक कार्यकर्ता सौम्यजीत ठाकुर ने उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की।

ठाकुर ने इस दौरान स्वतंत्रता संग्राम में दिवंगत अतुल चंद्र कुमार द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। महान स्वतंत्रता सेनानी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के करीबी विश्वासपात्र, स्वर्गीय अतुल चंद्र कुमार (1905-1967) ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान और इसके बाद के दशकों में राष्ट्र के लिए कई उल्लेखनीय योगदान दिए। बंगाल में अंग्रेजों के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलनों का नियमति रूप से नेतृत्व करने के लिए 1930 के दशक के दौरान उन्हें छह साल का कारावास भुगतना पड़ा।

उन्होंने हरिपुरा और त्रिपुरी कांग्रेस सत्रों के अध्यक्ष के रूप में नेताजी के चयन को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विशेष रूप से अगस्त 1938 में चीन-जापान युद्ध के दौरान चीन में चिकित्सा प्रतिनिधिमंडल भेजने में, बंगाल में वार्षिक बाढ़ के दौरान रहत कार्यों का आयोजन में, किसानों के अधिकारों के लिए लड़ना, 1955 में भारत की यात्रा के दौरान यूएसएसआर के राष्ट्रपति बुलगनिन के किए पुस्तकों का सहलेखन, सेवाग्राम में सामाजिक कार्यों के लिए योगदान, आचार्य विनोबा भावे की 1962 की मालदा यात्रा के दौरान उनकी बैठकों और गतिविधियों का समन्वय आदि योगदान शामिल हैं।
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