गुरुवार, 28 नवंबर 2024
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सामने मौत थी… द‍िल में हौसला… प‍िता को कहा था, यकीन द‍िलाता हूं मैं एक बहादुर स‍िपाही की मौत मरूंगा

सामने मौत थी… द‍िल में हौसला… प‍िता को कहा था, यकीन द‍िलाता हूं मैं एक बहादुर स‍िपाही की मौत मरूंगा - Major Somnath sharma
दुश्मन हमसे केवल पचास गज की दूरी पर है। हमारी गिनती बहुत कम रह गई है। हम भयंकर गोली बारी का सामना कर रहे हैं फिर भी, मैं एक इंच भी पीछे नहीं हटूंगा और अपनी आखिरी गोली और आखिरी सैनिक तक डटा रहूंगा

भारत के पहले परमवीर चक्र व‍िजेता मेजर सोमनाथ शर्मा ने ये शब्‍द बैटलफ‍िल्‍ड में उस वक्‍त कहे थे जब वो और उनकी छोटी सी टुकड़ी आधुन‍िक मोर्टार और ऑटोमेटिक मशीनगन से लेस पाक‍िस्‍तान के 700 सैन‍िक से घिर गई थी।

उस समय मेजर सोमनाथ शर्मा भारतीय सेना की कुमाऊं रेजिमेंट की चौथी बटालियन की डेल्टा कंपनी के कंपनी-कमांडर थे।

1947 में भारत पाकिस्तान के बीच हुए पहले संघर्ष के दौरान मेजर सोमनाथ मध्य कश्मीर के बडगाम जिले में पेट्रोलिंग कंपनी में तैनात थे। इसी दौरान बडगाम में अचानक 700 पाकिस्तानी सैनिकों ने हमला कर दिया। इन सभी सैनिकों के पास भारी मोर्टार और ऑटोमेटिक मशीन गन मौजूद थीं। इसके ठीक उलट मेजर सोमनाथ की कंपनी में कुछ ही सैन‍िक थे और न ही पाक‍िस्‍तानि‍यों की तरह आधुनि‍क हथि‍यार। ऐसे में उनके पास स‍िर्फ हौंसला था और सामने खड़ी मौत की आंखों में आखें डालने का साहस था। इसके अलावा उनके पास कुछ नहीं था।

पाकिस्तान के हमले में भारतीय बटालियन के सैनिकों की जान एक एक करते हुए जा रही थी। देखते ही देखते मेजर सोमनाथ के सामने अपने सैन‍िकों की लाशें जमा हो गई। ऐसे में मेजर सोमनाथ ने खुद आगे आकर दुश्मन से मोर्चा लेना शुरू कर द‍िया।

एक दहाड़ मारकर मेजर पाक‍िस्‍तानी सेना में घुस गए और उनके कई सैन‍िकों को ढेर कर द‍िया।

जानकर हैरानी होगी क‍ि ज‍िस वक्‍त पाक‍िस्‍तानी सेना ने बडगाम में हमला क‍िया था उस समय मेजर शर्मा एक अस्‍पताल में भर्ती थे और अपने फ्रैक्‍चर्ड हाथ का इलाज करवा रहे थे। उनके हाथ में प्‍लास्‍टर बंधा था। लेक‍िन जैसे ही उनहें हमले का पता चला, उन्‍होंने जाने के ल‍ि‍ए ज‍िद पकड़ ली। सेना के आला अफसरों की लाख कोशि‍शों के बावजूद मेजर शर्मा नहीं माने और बटाल‍ियन में शाम‍िल हो गए।

इस युद्ध के दौरान पाकिस्तान लगातार भारतीय सैन‍िकों पर गोल‍ियां, बम और मोर्टार दाग रहा था। भारतीय सैन‍िक शहीद होते जा रहे थे। लेक‍िन सोमनाथ युद्ध में कूद गए।

उनका बायां हाथ चोट खाया हुआ था और उस पर प्लास्टर बंधा था। इसके बावजूद सोमनाथ खुद मैग्जीन में गोलियां भरकर बंदूक धारी सैनिकों को देते जा रहे थे। तभी एक मोर्टार का निशाना ठीक वहीं पर लगा, जहां सोमनाथ मौजूद थे और इस हमले में भारत के वीर मेजर सोमनाथ शर्मा शहीद हो गए।

मेजर सोमनाथ शर्मा को भारत के पहले परमवीर चक्र व‍िजेता होने का गौरव प्राप्‍त है। हालांक‍ि भारत के प्रत‍ि‍ प्रेम और उनकी देशभक्‍ति‍ का अंदाजा तभी हो चुका था जब वे सेना में शाम‍िल हुए थे और उन्‍होंने अपने पर‍िवार और प‍िता को दिसंबर 1941 में यह खत ल‍िखा था। ज‍िसमें उन्‍होंने कहा था…

मैं अपने सामने आए कर्तव्य का पालन कर रहा हूं। यहां मौत का क्षणिक डर ज़रूर है, लेकिन जब मैं गीता में भगवान कृष्ण के वचन को याद करता हूं, तो वह डर मिट जाता है। भगवान कृष्ण ने कहा था कि आत्मा अमर है, तो फिर क्या फ़र्क़ पड़ता है कि शरीर है या नष्ट हो गया। पिताजी मैं आपको डरा नहीं रहा हूं, लेकिन मैं अगर मर गया, तो मैं आपको यकीन दिलाता हूं कि मैं एक बहादुर सिपाही की मौत मरूंगा। मरते समय मुझे प्राण देने का कोई दु:ख नहीं होगा। ईश्वर आप सब पर अपनी कृपा बनाए रखे