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77 वां स्वतंत्रता दिवस 2023 : 9 अगस्त को हुआ था काकोरी काण्ड, जानें पूरी कहानी

kakori train robbery was done by
Indian Independence Day 2023: अंग्रेजी दासता के खिलाफ सशस्त्र क्रांति के इतिहास में काकोरी कांड स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। 9 अगस्त को काकोरी कांड हुआ था। इस कांड ने देश में क्रांति की एक अलग जगा दी थी। इस कांड के बाद देश में आजादी का आंदोलन और तेज हो गया था। क्या था काकोरी कांड, क्यों यह दर्ज है ये इतिहास में।
 
9 अगस्त 1925 को रविवार के दिन पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में 10 युवकों ने अंग्रेज सरकार को चुनौती देते हुए वे सभी योजना के तहत 8 डाउन यात्री गाड़ी में शाहजहांपुर स्टेशन से शाम के समय सवार हुए। सही समय पर ट्रेन को काकोरी स्टेशन से लखनऊ की ओर एक मील आगे रोक लिया गया। गार्ड के डिब्बे से लोहे का संदूक उतारा लिया गया और पैसों से भरा थैला भी उतार लिया गया। इस ट्रेन में अंग्रेजों का हथियार और रुपया ले जाया जा रहा था। यह घटना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती थी। 
 
अंग्रेजी सरकार ने इस कांड के बाद सीआईडी अफसर हार्टन की अध्यक्षता में एक विशेष पुलिस इकाई गठित की। अंग्रेज सरकार ने उस दौर में अभियुक्तों को पकड़ने के लिए 5 हजार रुपए इनाम देने की घोषणा की थी। इसके बाद पुलिस ने संदिग्ध व्यक्तियों के घरों पर छापा मारा। बड़ी मशक्कत के बाद ट्रेन डकैती के नोट शाहजहांपुर में पकड़े गए।
 
26 सितंबर को राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह सहित लगभग 40 व्यक्तियों को बंदी बनाया गया। अशफाक उल्ला खां शाहजहांपुर से फरार हो गए थे, लेकिन उन्हें एक वर्ष बाद 8 सितंबर 1926 को दिल्ली में गिरफ्तार कर लिया गया। उनका मुकदमा अलग से चला। 
 
काकोरी कांड में चार क्रांतिकारियों को फांसी की सजा दी गई। इनमें राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को छोड़कर अशफाक उल्ला खां, राम प्रसाद बिस्मिल और रोशन सिंह शाहजहांपुर के थे। रोशन सिंह ट्रेन डकैती डालने वाले दल में नहीं थे, इसलिए उन्हें बमरौली डकैती के अंतर्गत फांसी दी गई।
 
रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में फांसी दी गई। जब उन्हें फांसी के तख्त पर ले जाया जा रहा था तो हाथ में गीता लेकर वंदे मातरम और भारत माता की जय कहते हुए फांसी के तख्ते के निकट गए। फांसी के तख्ते पर उनके अंतिम शब्द थे- मैं ब्रिटिश साम्राज्य का विनाश चाहता हूं। बिस्मिल के शव को लेकर गोरखपुर में एक जुलूस निकाला गया।