मंगलवार, 24 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. समाचार
  3. स्वतंत्रता दिवस
  4. 15th August
Written By

स्वाधीनता दिवस पर आत्मावलोकन आवश्यक

स्वाधीनता दिवस पर आत्मावलोकन आवश्यक - 15th August
- डॉ. कृष्णगोपाल मिश्र
 
स्वाधीनता दिवस एक बार फिर आत्मावलोकन का अवसर लेकर उपस्थित हुआ है। इसमें  संदेह नहीं कि देश ने गत 7 दशकों में सामाजिक-आर्थिक उन्नयन के नए कीर्तिमान गढ़े हैं।  शिक्षा, चिकित्सा, वाणिज्य, कृषि, रक्षा, परिवहन तकनीकी आदि सभी क्षेत्रों में विपुल विकास  हुआ है किंतु परिमाणात्मक विकास के इस पश्चिमी मॉडल ने हमारी गुणात्मक भारतीयता  को क्षत-विक्षत भी किया है। 
 
हमारी संतोषवृत्ति, न्याय के प्रति हमारा प्रबल आग्रह, निर्बलों और दीन-दु:खियों की  सहायता के लिए समर्पित हमारा संकल्प, सामाजिक-राजनीतिक संदर्भों में वाक् संयम,  धार्मिक जीवन में आडंबररहित उदारता और स्वदेश तथा स्वाभिमान के लिए संघर्ष की  चेतना हमारे स्वातंत्र्योत्तर परिवेश में उत्तरोत्तर विरल हुई है। महात्मा गांधी का ‘हिन्द  स्वराज’ यांत्रिक प्रगति के अविचारित प्रयोग की भेंट चढ़ चुका है।
 
आज एक ओर नेतृत्व को ‘डिजिटल इंडिया’ का दिवास्वप्न मुग्ध कर रहा है तो दूसरी ओर  बढ़ते साइबर क्राइम ने जनता के जीवन और धन दोनों की सुरक्षा पर गहरे प्रश्नचिन्ह  लगाए हैं। सत्ता प्रगति और विकास का नारा उछालती हुई नित नई समस्याओं का  मकड़जाल बुन रही है और जनता प्रचार तंत्र की विविधवर्णी प्रायोजित विवेचनाओं में भ्रमित  होकर दिशा ज्ञान खो रही है। 
 
वाणिज्य और विज्ञान आर्थिक उत्थान के पर्याय प्रचारित होने से जीवन का दिग्दर्शक  साहित्य हाशिए पर है और सामाजिक जीवन में निराशा, कुंठा और अवसाद का कुहासा  सघन होकर अमूल्य जीवन को आत्मघात के गर्त में धकेल रहा है। अवयस्क विद्यार्थी से  लेकर वयस्क किसान तक और बेरोजगार युवा से लेकर जिलाधीश जैसे प्रतिष्ठित प्रशासनिक  पद पर आसीन व्यक्ति तक आत्महत्या कर रहा है! आखिर क्यों? 
 
कड़े वैधानिक प्रावधानों के बाद भी बाल-मजदूरी क्यों जारी है? भ्रष्टाचार, बलात्कार और  सामूहिक हिंसा का ज्वार चरम पर क्यों है? आजादी की छांव तले पनपते ये सब ज्वलंत  प्रश्न आज गंभीर और ईमानदार विमर्श की अपेक्षा कर रहे हैं।
 
जीवन में दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है। दृष्टिकोण सदैव सकारात्मक-रचनात्मक होना आवश्यक  है। ‘गिलास जल से आधा भरा है’- यह सकारात्मक दृष्टि कही जाती है और ‘गिलास आधा  खाली है’- यह नकारात्मक दृष्टिकोण माना जाता है किंतु इन मान्यताओं में  सकारात्मकता-नकारात्मकता समान रूप से विद्यमान है। वस्तुत: दोनों दृष्टियां सकारात्मक  भी हैं और नकारात्मक भी हैं। 
 
‘गिलास जल से आधा भरा है’- यह दृष्टि आशान्वित करती है, कुंठा-अवसाद और निराशा  से बचाती है इसलिए सकारात्मक है किंतु यह गिलास को पूरा भरने के लिए प्रेरित नहीं  करती, अवचेतन में कहीं यह भाव भरती है कि ‘अभी तो अपने पास आधा गिलास जल शेष  है। जरूरत होने पर प्यास बुझ ही जाएगी। गिलास पूरा भरने के लिए अभी और प्रयत्न की  क्या आवश्यकता है? इसलिए यही दृष्टि नकारात्मक भी है। इसके विपरीत नकारात्मक  समझी जाने वाली दृष्टि ‘गिलास आधा खाली है’- गिलास को पूर्ण भरने के प्रयत्न की  प्रेरणा देती है इसलिए सकारात्मक है। 
 
दुर्भाग्य से स्वतंत्रता प्राप्ति के ‘आधे भरे गिलास’ को ही हम सकारात्मक दृष्टि मानकर  भौतिक उपलब्धियों में ही स्वतंत्रता की सार्थकता समझ बैठे हैं और अपने पारंपरिक-नैतिक  जीवन-मूल्यों की उपेक्षा करते हुए आज ऐसे अदृश्य बियाबान में आकर फंस गए हैं, जहां  साहस और संघर्ष की चेतना लुप्त है और मृत्यु का गहन अंधकार आकर्षक लग रहा है।  इसी कारण आत्महत्याएं बढ़ रही हैं। एक स्वाधीन देश की सार्वभौमिक सत्ता व्यवस्था के  लिए यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है।
 
सार्वजनिक संबोधनों के अवसर पर अपनी उपलब्धियों को गिनाना और अपनी गलतियों को  छिपाना हमारे नेतृत्व की पुरानी आदत रही है। यही कारण है कि हम स्वतंत्रता दिवस,  गणतंत्र दिवस जैसे महत्वपूर्ण अवसरों पर अपनी दशा और दिशा का निष्पक्ष विवेचन करने  के स्थान पर योजनाओं के नाम-परिगणन और आंकड़ों के प्रदर्शन में उलझकर रह जाते हैं।  गिलास का आधा भरा होना हमें मोह लेता है और हम पूरा भरने का प्रयत्न नहीं करते।  इसीलिए हमारी योजनाएं ‘स्मार्ट सिटी’ के लिए अर्पित होती हैं, झुग्गी-झोपड़ियों के लिए  नहीं। 
 
हम अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं पर करोड़ों व्यय करते हैं किंतु अभी भी शुद्ध पेयजल  जैसी अनिवार्य सुविधाओं से वंचित सुदूरस्थ गांवों तक पानी पहुंचाने का सार्थक और  ईमानदार प्रयत्न नहीं करते। नित नई दुर्घटनाएं होती हैं, जांच समितियां बनती हैं, आयोग  बैठते हैं और समस्याएं जस की तस खड़ी रह जाती हैं, क्योंकि न्याय की लंबी प्रक्रिया में  दोषी देर तक दंडित नहीं हो पाते। इन बिंदुओं पर अब गहन और निष्पक्ष चिंतन अपेक्षित  है। 
 
प्रख्यात साहित्यकार 'अज्ञेय' के शब्दों में कहें तो आज हमें ‘आलोचक राष्ट्र की आवश्यकता  है’- एक ऐसा राष्ट्र जिसके नेता-बुद्धिजीवी अपने दलीय-वर्गीय हितों के लिए नहीं, बल्कि  समस्त भारतवर्ष के हित-चिंतन हेतु चिंतित हों, जो दल, जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा आदि की  समस्त स्वार्थप्रेरित सकीर्णताओं से ऊपर उठकर ‘भारति जय-विजय करे’ का चिर-प्रतीक्षित  स्वर्णिम स्वप्न साकार कर सकें। यही स्वतंत्रता दिवस पर शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि है।  अन्यथा आत्मप्रशंसा अथवा परस्पर पंक-प्रक्षेपणपूर्ण कूटनीतिभरे भाषणों से अच्छे दिन आने  वाले नहीं।
 
कई दशक पहले पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने लिखा था-
 
‘पन्द्रह अगस्त का दिन कहता
आजादी अभी अधूरी है।’
 
वास्तव में आजादी अभी भी अधूरी है। उसे पूरा करने के लिए सजग और ईमानदार प्रयत्नों  की, दृढ़ संकल्पों की और दूरदृष्टिपूर्ण वैश्विक समझ की आवश्यकता है। आजादी के अमृत  से हमारा आधा गिलास भरा हुआ है और स्वस्थ-समरस समाज निर्माण के कठिन  संकल्पपूर्ण प्रयत्नों से हमें उसे पूरा भरना है। अंत्योदय और सर्वोदय की संकल्पना साकार  करनी है इसलिए स्वतंत्रता दिवस के इस अवसर पर निष्पक्ष आत्मावलोकन अपेक्षित है। 

भारत विभाजन 
 
ये भी पढ़ें
हिन्दी निबंध : स्वतंत्रता दिवस