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Written By WD

इतिहास के पन्नों से गुमनाम हैं जो शहादतें

इतिहास के पन्नों से गुमनाम हैं जो शहादतें -
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- नीहारिका झा

भगत सिंह की शहादत आज भी बच्चे-बच्चे की जुबान पर है, तो चंद्रशेखर की कुर्बानी लोगों की आँखें नम कर देती हैं, सुखदेव, राजगुरू, खुदीराम बोस जैसे वीर योद्धाओं की कुर्बानी इतने वर्षों बाद भी लोगों के जेहन में ताजा हैं, लेकिन ऐसे कितने ही वीरों ने प्राणों की आहुति दीं, जो इतिहास के पन्नों में दर्ज भी नहीं हो पाईं, देश को स्वतंत्र कराने में उनकी शहदातों को मिली तो केवल गुमनामी। ये देश को स्वंतत्र कराने के लिए अपनी अंतिम साँस तक लड़ते रहे। 26 अगस्त 1914 की रोडा सशस्त्र डकैती की स्वंत्रता संग्राम में एक अहम भूमिका थी। इस डकैती को अंजाम देने वाले अनुकूल बनर्जी, सूर्य सेन और बाघा जतीन का नाम आज भी गुमनामी के अँधेरों में है।

देश के पूर्वी और पश्चिमी भागों में जो लड़ाईयाँ लड़ी जा रही थीं, उनके नायक अपने-अपने स्तर पर डटे हुए थे। इन आंदोलनों में उच्च शिक्षित योद्धाओं के शामिल होने से आंदोलन ने अलग मोड़ ले लिया था। जतींद्रनाथ बनर्जी उनके भाई बरींद्रनाथ जैसे कुछ लोग संगठनों के माध्यम से पूर्व में आंदोलन की आग को बुझने नहीं दे रहे थे। 1902 में पी.मित्र ने अनुशीलन समिति का गठन किया, ताकि संघर्ष को और धारदार बनाया जा सके। पी. मित्र पेशे से वकील थे, इस संगठन में पुलीन दास और तैलोक्य चक्रवर्ती थे, जिन्होंने गुप्त तरीके से आजादी का संघर्ष जारी रखा था।

गुमनाम महिला क्रांतिकारी : आजादी की लड़ाई में महिलाओं के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता, उन्होंने पुरूषों के कंधे-से-कंधा मिलाकर उनका साथ दिया। स्वदेशी आंदोलन, असहयोग आंदोलन से लेकर गुप्त तरीके से आजादी के मिशन को जारी रखने में अपना सहयो
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देती रहीं। सिस्टर निवेदिता, सरोजनी नायडू, मैडम भीखाजी कामा का नाम आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है, लेकिन कुछ महिला क्रांतिकारी ऐसी भी हुईं, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी, लेकिन आज भी लोग उनकी कुर्बानियों से अनजान हैं।

प्रीतिलता वड्डेदार, बीना दास, सुनीति चौधरी, शांति घोष ऐसे ही कुछ नाम हैं, जो इतिहास के पन्नों पर दर्ज नहीं हो पाए।

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नमक कानून भंग होने के उपरांत हजारों की संख्या में महिलाओं ने शराब की दुकानों पर धरना दिया और नमक भी बेचा। महिलाओं के नारसत्याग्रह समिति, सेविका संघ जैसे संगठनों की अहम भूमिका रही। मणिपुर की रानी गेडिलियो ने मात्र 13 वर्ष की आयु में ही संघर्ष का हिस्सा बन गईं और पूर्वी क्षेत्र के संघर्ष में अपना योगदान देती रहीं। अंतत: ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर आजीवन कारावास दे दिया।

न जाने ऐसे कितने ही नाम हैं, जिनकी जानकारी न तो ब्रिटिश सरकार के पास थी और न ही भारतीय जनता ही उन्हें जान सकी। वे गुप्त तरीके से अपना योगदान देते रहे और देश को आजादी की राह पर ले जाने के लिए संघर्ष करते रहे।