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Written By WD Feature Desk
Last Updated : शुक्रवार, 15 नवंबर 2024 (08:13 IST)

भगवान बिरसा मुंडा की जयंती आज, जानिए कैसे हुआ था मुंडा समुदाय के अधिकारों पर आक्रमण

किस तरह भगवान बिरसा मुंडा ने धर्मांतरित लोगों को दिलाया था स्वदेशी संस्कृति का ज्ञान

Birsa Munda Jayanti 2024
15 नवंबर : भगवान बिरसा मुंडा का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और जनजातीय अधिकारों की रक्षा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वे मुंडा जनजाति के थे और अपने समय में उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत और उनके अन्याय के खिलाफ एक बड़ा विद्रोह किया था। बिरसा मुंडा को उनकी वीरता और योगदान के कारण लोग उन्हें 'भगवान' मानते हैं, और उनके अनुयायी आज भी उनके बलिदान को याद करते हैं।ALSO READ: आदिवासी भारत के हिन्दू धर्म के किस समाज से हैं?
 
कैसे हुआ था आदिवासी मुंडा समाज के अधिकारों का हनन 
मुंडाओं का जीवन अत्यंत चुनौतीपूर्ण था, आज यहां तो कल वहां। जीवनयापन एक समस्या थी। जंगल काटकर उन्होंने खेती योग्य भूमि तैयार की। वहां विशेष पर्व पर बोंगाओं की तुष्टि के लिये बलि दी जाती थी। गांव के मुखिया को 'मुंडा' और ऐसे कुछ गांवों के समूह के मुखिया को 'मानकी' कहते थे। मुंडा अपने गांव का जमींदार होता था। उसकी सम्मति के बिना गांव का कोई काम नहीं होता था। मुंडाओं के अनेक 'किल्ली' या गोत्र थे।ALSO READ: 15 नवंबर : महान क्रांतिकारी बिरसा मुंडा की जयंती, जानें 10 बातें
 
जब तक मुंडा समुदाय अपने वनों तक सीमित था, उनका जीवन सरल, सादा व सुखी था। परंतु मुंडा सरदार जब बिहार तथा मध्य प्रदेश के राजसी परिवारों के साथ सामाजिक संबंध बनाने लगे तो वे उनके राजसी वैभव के प्रति आकर्षित हुए। राज पुरोहितों और अधिकारियों को देने के लिए मुंडा सरदारों के पास पर्याप्त धन नहीं था। इसलिए वे उनके नाम गांवों की जमीन या कुछ गांव लिख देते थे। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि वे वहां जाकर ग्रामवासियों को निकालकर उनकी सम्पत्ति पर अपना अधिकार प्रस्थापित करते अथवा उनका शोषण कर उन्हें जीवनभर अपनी गुलामी करने पर बाध्य करते।ALSO READ: बिरसा मुंडा का शहीद दिवस, जानें उनकी कहानी
 
जब अंग्रेजों ने इस देश की सत्ता पर बलात् रूप से अधिकार जमाया तो स्थिति और अधिक भयावह होने लगी। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेज यह समझ गये थे कि इस देश पर शासन करने में उनके समक्ष सबसे बड़ी समस्या थी - यहां के लोगों में उनके प्रति आक्रोश व उससे जनित सामाजिक व राजनैतिक एकता। इस एकता को तोड़ने के लिए उन्होंने भेदभावपूर्ण नीति अपनाने की कोशिश की यानी 'फूट डालो, राज करो' का मूल मन्त्र। ALSO READ: बिरसा मुंडा जयंती - कौन थे बिरसा मुंडा, 10 प्रमुख बातें
 
छोटे राजाओं को उन्होंने लगान वसूली के अधिकार दिए तथा लगान की राशि के अनुसार उनके कमीशन निश्चित किए गए। इस प्रकार प्रजा का शोषण होने लगा। मुंडाओं को बलपूर्वक असम के चाय बागानों में कुली का काम करने पर विवश किया गया। अंग्रेजों ने ऐसे कानून बनाये जिनके अंतर्गत वनवासियों के परंपरागत अधिकार छीन लिए गए। जंगल सरकार की सम्पत्ति हो गए। जंगलों को काट कर वहां अंग्रेजों की छावनियों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यापारी बसाए गए।
 
धीरे-धीरे अंग्रेजी भाषा का प्रचार-प्रसार बढ़ने लगा। कानून व अन्य विषय अंग्रेजी भाषा में लिखे गए जो आज भी विद्यमान हैं। मुंडाओं को अपनी भाषा मुंडारी के अतिरिक्त अन्य किसी भाषा का ज्ञान नहीं था। अंग्रेजों और उनके देशी अफसरों को मुंडा समाज की भाषा, समाज व्यवस्था और परम्पराओं आदि का ज्ञान नहीं था। दुभाषिए इसका लाभ उठाकर मुंडाओं का शोषण करने लगे। इससे मुंडाओं की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गयी। उनमें अंग्रेजी शासन के प्रति आक्रोश व संघर्ष की भावना प्रबल होने लगी। 1857 के युद्ध के बाद यूरोप से रोमन कैथॉलिक मिशन और जर्मन लुथेरियन चर्च के मिशनरियों का एक छोटा दल नागपुर आया। उन्होंने भूखे लोगों को खाना खिलाना, विद्यालय चलाना, चिकित्सा के लिए दवाखाना, जैसे कई सामाजिक कार्य प्रारम्भ करें। सेवा की आड़ में उनके धर्म का प्रसार करना उनका मुख्य उद्देश्य था। भोले-भाले वनवासी विवश होकर अपना धर्म परिवर्तन कर ईसाई बनने लगे। ALSO READ: छत्तीसगढ़ में होगा जनजातीय गौरव दिवस समारोह, मनसुख मांडविया निकालेंगे पदयात्रा, 10 हजार युवा होंगे शामिल
 
वनवासियों को आश्वासन दिया गया कि यदि वे ईसाई मत अपनाऐंगे तो उनकी जमीन व अन्य अधिकार वापस दिए जायेंगे। मिशनरियों से आश्वासन मिलने के बाद मुंडा समाज के मुखिया ईसाइयत अपनाने हेतु सभाएं करने लगे व अपने अधिकारों को वापस लेने के लिए आन्दोलन करने लगे। वास्तव में अंग्रेज शासक वनवासियों को उनके अधिकार या जमीन लौटाना नहीं चाहते थे। 
 
इन बढ़ते अत्याचारों का एहसास जब बिरसा मुंडा को हुआ, तब उन्हें लगा की उनके अपने धर्म में भी स्वच्छता और जागरूकता की जरूरत है। उन्होंने धर्मांतरित लोगों को समझाया कि धर्म परिवर्तन करने से हम अपने पूर्वजों की श्रेष्ठ परंपरा से विमुख होंगे। इसे अपनाकर हम अपनी गौरवशाली और वैभवशाली परंपराओं, इतिहास और संस्कृति को अपने गुरुओं, पूर्वजों की श्रेष्ठ शिक्षा से वंचित हो रहे हैं। हमें अंग्रेजों से अपने वन क्षेत्रों पर अधिकार वापस लेना है। यदि हमें अपने अधिकारों को पुनः प्राप्त करना है और फिर से वनों का सुखमय जीवन जीना है तो हमें अपनी संस्कृति के आधार पर अपने जीवन को व्यवस्थित करना होगा। 


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