'रंग बरसे भीगे चुनरवाली... रंग बरसे...।' रंगों की बौछार, भांग का गुमार और हंसी-ठिठोली का मौसम लाने वाला पर्व है होली। इसके रंगीले मिजाज और उत्साह की बात ही कुछ और है।
मौज-मस्ती और प्रेम-सौहार्द से सराबोर यह त्योहार अपने भीतर परंपराओं के विभिन्न रंगों को समेटे हुए है, जो विभिन्न स्थानों में अलग-अलग रूपों में सजे-धजे नजर आते हैं।
विभिन्नता में एकता वाले इस देश में अलग-अलग क्षेत्रों में इस त्योहार को मनाने के अलग-अलग अंदाज हैं। मगर इन विविधताओं के बावजूद हर परंपरा में एक समानता अवश्य है, यह है प्रेम और उत्साह जो लोगों को आज भी सब कुछ भूल कर हर्ष और उल्लास के रंग में रंग देते हैं।
मथुरा-वृंदावन की होली
रंग-गुलाल से सजी होली का स्वागत विभिन्न क्षेत्रों के लोग अपने-अपने तरीके से करते हैं। वहीं कुछ स्थानों पर होली मनाने की परंपरा तो देश-विदेश में भी लोगों को आकर्षित करती है। कृष्ण और राधा के प्रेम के प्रतीक मथुरा-वृंदावन में होली की धूम 16 दिनों तक छाई रहती है, जिसमें इनके दैवीय प्रेम को याद किया जाता है। कहते हैं बचपन में कृष्ण राधा रानी के गोरे वर्ण और अपने कृष्ण वर्ण का कारण माता यशोदा से पूछा करते थे। एक बार उन्हें बहलाने के लिए माता यशोदा ने राधा के गालों पर रंग लगा दिया। तब से इस क्षेत्र में रंग और गुलाल लगाकर लोग एक-दूसरे से स्नेह बांटते हैं।
बरसाने और नंदगांव की होली
मथुरा-वृंदावन के साथ ही इस पर्व की अनुपम छटा राधा मैया के गांव बरसाने और नंदगांव में भी नजर आती है। वहीं बरसाने की लठमार होली तो विश्व-प्रसिद्ध है। यहां पर महिलाएं पुरुषों को लठ से मारती हैं और पुरुष उनसे बचते हुए उन पर रंग लगाते हैं।
हरियाणा में होली
वहीं हरियाणा में होली (धुलेंडी) के दौरान भाभी-देवर के रिश्ते की मिठास की अनोखी मिसाल दिखती है, जब भाभियां अपने प्यारे देवरों को पीटती हैं और उनके देवर सारे दिन उन पर रंग डालने की फिराक में होते हैं। भाभियों का यह प्यारा सा बदला इस क्षेत्र में होली को 'धुलेंडी होली' का नाम देता है।
महाराष्ट्र और गुजरात की होली
वहीं महाराष्ट्र और गुजरात के क्षेत्रों में मटकी-फोड़ होली की परंपरा बहुत प्रचलित है। पुरुष मक्खन से भरी मटकियों को फोड़ते हैं, जिसे महिलाएं ऊंचाई पर बांधती हैं। इसे फोड़कर रंग खेलने की परंपरा कृष्ण के बालरूप की याद दिलाती है। जब पुरुष इन मटकों को फोड़ने के लिए पिरामिड बनाते हैं, तब महिलाएं होली के गीत गाते हुए इन पर बाल्टियों में रंग भरकर फेंकती हैं। मौज-मस्ती का यह पर्व अपने पूरे शबाब पर नजर आता है।
बंगाल में होली
बंगाल में होली का 'डोल पूर्णिमा' नामक स्वरूप बेहद प्रचलित है। इस दिन का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि इस दिन को प्रसिद्ध वैष्णव संत महाप्रभु चैतन्य का जन्मदिन माना जाता है। डोल पूर्णिमा के अवसर पर भगवान की अलंकृत प्रतिमा का दल निकाला जाता है और भक्तगण पूरे उत्साह के साथ इस दल में भाग लेते हैं और हरि की उपासना करते हैं। वहीं गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित शांति-निकेतन में होली को 'वसंत उत्सव' के रूप में मनाया जाता है।
पंजाबी होली
सिख धर्मानुयायियों में भी होली की काफी महत्ता है। सिख धर्मानुयायी इस पर्व को शारीरिक व सैनिक प्रबलता के रूप में देखते हैं। होली के अगले दिन अनंतपुर साहिब में 'होला मोहल्ला' का आयोजन होता है। ऐसा मानते हैं कि इस परंपरा का आरंभ दसवें व अंतिम सिख गुरु, गुरु गोविंदसिंहजी ने किया था।
मणिपुर की होली
देश का हर कोना होली के रंगों से रंगा हुआ है। मणिपुर में यह रंगों का त्योहार छः दिनों तक मनाया जाता है। साथ ही इस पर्व पर यहां का पारंपरिक नृत्य 'थाबल चोंगबा' का आयोजन भी किया जाता है। इस तरह से होली का यह पर्व पूरे देश को प्रेम और सौहार्द के रंग में सराबोर रखता है।