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Written By WD Feature Desk
Last Updated : शनिवार, 1 फ़रवरी 2025 (10:29 IST)

भगवान गणेश को समर्पित शुभ तिथि है विनायक चतुर्थी, पढ़ें महत्व, पूजा विधि और कथा

भगवान गणेश को समर्पित शुभ तिथि है विनायक चतुर्थी, पढ़ें महत्व, पूजा विधि और कथा - Vinayaka Chaturthi Vrat 2025
Vinayaka Chaturthi : विनायक चतुर्थी, हिन्दू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है। इसे गणेश चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है, यह पर्व ज्ञान, बुद्धि और समृद्धि के देवता, भगवान गणेश को समर्पित होता है। हर महीने में दो चतुर्थी तिथियां आती हैं- एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में। शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है, जबकि कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। आइए जानते हैं यहां इस व्रत के बारे में खास जानकारी...ALSO READ: कोंकण के तटीय क्षेत्र में माघ शुक्ल चतुर्थी को मनाते हैं गणेश जयंती, महाराष्ट्र में क्या कहते हैं इसे
 
विनायक चतुर्थी का महत्व : विनायक चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। धार्मिक शास्त्रों में भगवान श्री गणेश को विघ्नहर्ता कहा गया है, क्योंकि वे सभी बाधाओं को दूर करते हैं। विनायक चतुर्थी को नए कार्यों की शुरुआत के लिए बहुत ही शुभ दिन माना जाता है। मान्यता है कि चतुर्थी तिथि पर गणेश जी की पूजा करने से जीवन में समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है। आपको बता दें कि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पर चंद्रमा का पूजन नहीं किया जाता है, जबकि कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी के दिन चंद्रमा का पूजन करके उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। 
 
विनायक चतुर्थी की पूजा विधि :
1. विनायक चतुर्थी के दिन सुबह उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें।
2. भगवान गणेश की प्रतिमा या चित्र को एक चौकी पर स्थापित करें।
3. उन्हें लाल फूल, अक्षत, धूप, दीप आदि अर्पित करें।
4. 'ॐ गं गणपतये नमः' मंत्र का जाप करें।
5. गणेश चतुर्थी की कथा पढ़ें या सुनें।
6. अंत में आरती करके सच्चे मन से प्रार्थना करें। 
7. भगवान गणेश से अपनी मनोकामनाएं कहें। 
 
विनायक चतुर्थी के दिन क्या करें : 
- भगवान गणेश की पूजा करें।
- व्रत रखें।
- गरीबों को दान करें।
- गणेश मंत्रों का जाप करें।
- गणेश कथा पढ़ें या सुनें।
 
विनायक चतुर्थी की प्रसिद्ध कथा : पौराणिक कथा के अनुसार, भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को भगवान गणेश का जन्म हुआ था। माता पार्वती ने अपने शरीर पर लगे चंदन के लेप को तेल के साथ मिलाकर एक शिशु का रूप तैयार किया और फिर उसमें प्राण फूंक दिए। जन्म के बाद उन्हें द्वार पर पहरेदार नियुक्त कर दिया।

शिव जी जब आए तो गणेश जी ने उन्हें रोक दिया। शिव जी ने क्रोधित होकर गणेश जी का सिर काट दिया। बाद में माता पार्वती के क्रोधित होने पर शिव जी ने गणेश जी के धड़ पर एक हाथी का सिर लगाकर उसमें जान फूंक दी। इस तरह से विनायक चतुर्थी व्रत पर यह कहानी पढ़ी या सुनीं जाती है।

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