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लघुकथा : साझा छत

लघुकथा : साझा छत - short story about relationship
"बधाई हो! सुमीता तुम भी सास बन गई। बहुत बढ़िया दामाद ढूंढा है। राम-सीता सी सुंदर जोड़ी लग रही है। लेकिन एक बात कहूँ... मुझे तुम्हारा अपनी बेटी का यूँ बड़े परिवार में रिश्ता तय करना समझ नहीं आया?"
 
"देखो, सलोनी इतनी सुंदर, पढ़ी-लिखी, स्वतंत्र विचारों के साथ पली-बढ़ी है। तुम्हें लगता है वह इतने बडे़ चिड़ियाघर में रह पाएगी ??? ममता की आँखों में प्रश्न के साथ व्यंग्य भी तैर रहा था।"
 
"ममता, देखो ऐसा है कि मैंने चिड़ियाघर में नहीं बल्कि संयुक्त परिवार में रिश्ता तय किया है। वहाँ मैंने देखा है कि घर के बुजुर्ग बच्चे संभाल रहे हैं, बहुओं के बीच काम का बँटवारा है, जिससे सब बहुओं के पास अपने लिए समय है, जिसमें वे बेफिक्री से बाहर नौकरी तो घर का काम भी कर रही हैं। इसलिए साझा छत में सलोनी को भी अपने अरमानों को पूरा करने का मौका मिलेगा।

मैं यह बात इतने दावे के साथ इसलिए कह रही हूँ क्योंकि मैं, इनकी नौकरी के कारण एकल परिवार में रहकर घर और बच्चों की जिम्मेदारी के चलते अपने कई सपनों का गला घोंट चुकी हूँ। मैं खुश हूँ कि मेरी बेटी उस घर की बहू बनने जा रही है।"  
 
सुमीता मुस्कुराते हुए बोली।
         ममता खड़ी हो गई।
         उसका तीर खाली जा चुका था।
 
©® सपना सी.पी.साहू "स्वप्निल"