मंगलवार, 19 नवंबर 2024
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कही-अनकही 11 : तुमसे तो कुछ भी बोलना ही बेकार है

कही-अनकही 11 : तुमसे तो कुछ भी बोलना ही बेकार है - A short story about relationship kahi ankahi
'हमें लगता है समय बदल गया, लोग बदल गए, समाज परिपक्व हो चुका। हालांकि आज भी कई महिलाएं हैं जो किसी न किसी प्रकार की यंत्रणा सह रही हैं, और चुप हैं। किसी न किसी प्रकार से उनपर कोई न कोई अत्याचार हो रहा है चाहे मानसिक हो, शारीरिक हो या आर्थिक, जो शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता, क्योंकि शायद वह इतना 'आम' है कि उसके दर्द की कोई 'ख़ास' बात ही नहीं। प्रस्तुत है एक ऐसी ही 'कही-अनकही' सत्य घटनाओं की एक श्रृंखला। मेरा एक छोटा सा प्रयास, उन्हीं महिलाओं की आवाज़ बनने का, जो कभी स्वयं अपनी आवाज़ न उठा पाईं।'
रिश्तों में स्पष्ट संचार और वार्तलाप बेहद आवश्यक है, मस्ती-मजाक, रूठना-मनाना भी रिश्तों को मजबूती देता है, एक-दूसरे को समय देना और एक-दूसरे की निजता का भी सम्मान करना ज़रूरी है... लेकिन क्या इसकी आड़ में हर बात पर ‘अबोला’ सही है?
 
‘ये परफ्यूम क्यों लिया तुमने एना ? बकवास है एकदम...’
 
‘आदि, मैंने पूछा तो था खरीदते समय। तुम्हीं ने कहा जो पसंद आए ले लो। तुम्हारा ध्यान ही नहीं था, तुम फ़ोन पर ही व्यस्त थे। तुम मेरे साथ होते हुए भी हर वक़्त किसी और का साथ क्यों ढूंढते हो? फ़ोन पर बाद में बात कर लेते... खैर, मैं वापस कर दूंगी...’ कह कर एना उदास हो गई।
 
‘अरे मैं तो मजाक कर रहा था। तुमसे तो कुछ भी बोलना ही बेकार है। हर बात में मुंह फूल जाता है। बुरा मानने वाली कोई बात ही नहीं थी। 
 
बोलूं गा ही नहीं अब से कुछ भी। इसीलिए मैं दूसरों से बात करना ज्यादा पसंद करता हूं, बजाए तुम्हारे।’
 
और फिर आदि ने तीन दिन तक एना से तब तक बात नहीं की, जब तक एना ने ‘ओवर-रियेक्ट’ करने के लिए रो-रो कर माफ़ी नहीं मांग ली।
 
कुछ दिनों बाद सड़क पर पानी होने से एना की गाड़ी फिसल गई और पैर में थोड़ी चोट आई थी।
 
‘हाहाहा, शायद तुमको दिखाई नहीं दिया होगा एना। सही तो कहते हैं मेरे घरवाले, खुद का ही ध्यान नहीं रख सकती हो तो मेरा क्या रखोगी...’
 
‘मेरी गाड़ी फिसली, चोट लगी मुझे, गाड़ी भी मैं ही चला रही थी... और मैं तो तुम्हें कुछ बोल तक नहीं रही हूं आदि । फिर भी तुम ऐसा बोल रहे हो? आश्चर्य की बात ये है कि मैं अगर सौ बार मेरी भावनाएं नज़रअंदाज़ कर रही हूं, तो क्या तुम एक बार मेरी परेशानी नहीं समझ सकते?’ कह कर एना हौले से मुस्कुरा दी। 
 
‘ये देखो अजीब सी हंसी तुम्हारी एना... ब्रेसेस लगा लोगी तो हंस तो पाओगी खुल कर।’
 
एना को बुरा लगा और उसने मुस्कुराना छोड़ दिया।
 
‘तुमसे तो कुछ भी बोलना ही बेकार है एना। तुमको बुरा लगा ही क्यों किसी बात का? बात तो ऐसी थी ही नहीं कि बुरा लगे। अब तुमसे कुछ भी बोलने से पहले मुझे सौ बार सोचना पड़ेगा।’ 
 
और फिर, आदि ने फिर से तीन-चार दिन एना से बात नहीं की, तब तक जब तक उसे रो कर माफ़ी नहीं मांगी... कि उसी की गलती थी, उसी ने ‘ओवर रियेक्ट’ किया।
 
....और ऐसे ही, ढेर सारे किस्से हो जाने के बाद, हर बार आदि जानबूझ कर एना को चोट पहुंचाता, उसे बुरा लगता तो कह देता कि ‘मज़ाक’ था... एना चुप हो जाती तो एना से ही बात बंद कर देता... हां, ना, हम्म में जवाब देने लगता । घर की मनहूसियत एना को खाने दौड़ती । कोई बात करने को नहीं । बात करने की कोशिश करो तो आदि की नज़रों में ही इतनी नफरत होती कि एना कुछ बोलने से ही डरती। इतना सन्नाटा, इतना क्लेश, इतनी नकारात्मकता ने एना को अन्दर तक घाव कर दिए थे।
 
‘तुमसे बात करो, तो दिक्कत। बात नहीं करो, तो भी दिक्कत। तुमसे मज़ाक नहीं करूंगा तो किससे करूंगा फिर एना? लेकिन तुम तो मेरी खुशियां ही मुझसे छीनने के लिए तैयार बैठी रहती हो। जिस भी चीज़ में मुझे मज़ा आता है, उसमे तुम्हारा मुंह फूल जाता है।’
 
‘तुम्हें सिर्फ मुझे दुःख देने में मज़ा आता है, आदि ।’
 
‘हां आता है, लेकिन तुमको बुरा लगना ही नहीं चाहिए। मैं बुरा बोलूं तो भी तुम्हें फर्क ही नहीं पड़ना चाहिए। तुमने तो हमेशा खुश ही रहना चाहिए। तुमसे कुछ बोलो तो दिक्कत होती है, तो मैं सोचता हूं बोलना ही छोड़ दूं।’
 
‘आदि तुम संतुलित क्यों नहीं रह सकते? या तो सिर्फ मज़ाक के नाम पर दुःख दोगे या बात ही बंद कर दोगे?’
 
‘संतुलन तुम तो सिखाओ ही मत एना। तुमसे तो बात करना भी बेकार है। यही कारण है कि मैं कुछ बोलना ही पसंद नहीं करता। और इसीलिए मैं दूसरे लोगों का साथ ज्यादा पसंद करता हूं। कम से कम उनसे मजाक तो खुल कर कर सकता हूं। वो रोते भी नहीं। खैर उनकी बात अलग हैं, लेकिन तुम जब तक रो कर माफ़ी नहीं मांगोगी तो मुझे समझ कैसे आएगा कि वाकई में तुम्हें ‘सॉरी’ फील हुआ?’
 
कह कर एक बार फिर आदि ने एना से बात बंद कर दी। लेकिन इस बार एना ने पलट कर माफ़ी नहीं मांगी, और उठ कर चली गई। आदि ने भी बात नहीं की, तब तक जब तक उसे एना से काम नहीं पड़ा।
 
अब एना को एहसास हो चुका था कि उसका हर बार गलती न होने पर भी माफ़ी मांगना, जो बातें बुरी लगें उन्हें हर बार ‘नज़रंदाज़’ करना, आदि की हर बात को ‘मज़ाक’ समझ कर माफ़ कर देना, ‘ओवर-रियेक्ट’ करने के लिए खुद रो कर माफ़ी मांगने से ही एक-तरफ़ा रिश्ता धक रहा था। 
 
एना की हर ‘कही’ बात ‘अनकही’ ही होती जा रही थी, और बार-बार बात करने की एक-तरफ़ा कोशिश से बेहतर है कि ‘अबोले’ में शांति से और आत्मसम्मान के साथ रहें। आपका क्या विचार है?
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