मंगलवार, 22 जुलाई 2025
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Written By WD

नदियों के हत्यारे

नदियों हत्यारे
WDWD

जाने कितने
रूप-रंग, डील-डौल में फैले हैं

उद्‍गम से कछार तक
नदियों के हत्यारे

फिर भी बाकी है
पहाड़ की नाभि में अमृतकुंड

कोरे बिम्ब या प्रतीक रचती भाषा
बाँझ होती है

और लहरों के हाथों जल तरंग बजाती
सार्थक ध्वनियों से

सतपुड़ा को अनुगुंजित करती गंजाल
लोक धुनों की टेक पर गीत गाती
WDWD

नाचती थिरकती
शैल-शिखरों वनांगनों से विदा लेती

रेवा से गले मिलने
उतार चढ़ाव लाँघती दौड़े जा रही है।

साभार : अक्षरा