मंगलवार, 22 जुलाई 2025
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Written By WD

तुम आते हो तो लगता है

तुम आते हो तो लगता है
शिवनाथ 'बिस्मिल'


उदासी बनके या फिर अश्रु बनकर बोलता है।
न बोलूँ मुख से दुख अपना तो अंतर बोलता है।

टपकता हो शहद जैसे कि जैसे फूल झरते हों।
वह कुछ इतना मधुरतम और सुंदर बोलता है।

जिसे आदर्श माना है उकेरा है उसे वर्ना।
न कोई मूर्ति बोले औ न पत्थर बोलता है।

महक जाते हैं खिड़की-द्वार, खिल उठती हैं दीवारें।
तुम आते हो तो लगता है, मेरा घर बोलता है।

न जाने किसने विष घोला है 'बिस्मिल' इन हवाओं में।
न पक्षी चहचहाते हैं न तरुवर बोलता है।

साभार : अक्षरम् संगोष्ठी