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Written By डॉ. रामकृष्ण सिंगी

फिर-फिर जिंदा होता रावण...

फिर-फिर जिंदा होता रावण... - Poem on Ravan
हम जलाते रहते हैं हर बार रावण,
आरोपित करके उसमें सब बुराइयां।
और देख लेते हैं उस प्रतिबिम्ब में
आज के दूषणों की भी सब परछाइयां।।1।।
 
फिर विजयादशमी की शाम प्रसन्न मन,
लौटते हैं घर को विजयी भाव में।
अब अपना जीवन निरंतर शांतिमय,
बीतेगा अच्छाइयों की छांव में।।2।।
 
दूसरे दिन पर ताजे अखबार में वे ही चर्चे,
दुष्ट रावणों के चारों ओर से।
आतंकियों, माफियाओं, घूसखोरों, दलालों,
पाखंडियों, बलात्कारियों के जघन्य घनघोर से।।3।।
 
हर बार उस आग की लौ से निकल,
वह रावण-तत्व ओझल हो जाता है चुपचाप।
और हम उलझ जाते हैं जिंदगी की आतिशबाजियों में,
अपनी अजानी किसी भूल पर करते हुए से पश्चाताप।।4।।
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