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भारत माता पर कविता : जय भारती

भारत माता पर कविता : जय भारती - poem on patriotism
हिम तुंग शिखर से आच्छादित,
भारत का स्वर्ण मुकुट चमके।
माता के पावन चरणों में,
हिन्द नील का जल दमके।
 
पश्चिम में कच्छ की विशाल भुजा,
पूरब में मेघ की गागर है।
उत्तर में है कश्मीरी केसर,
दक्षिण में हिन्द का सागर है।
 
भारत अविचल और सनातन,
सब धर्मों का सम्मान यहां।
बाइबिल, गीता और कुरान की,
शिक्षाओं का गुणगान यहां।
 
भारतमाता की जय कहना,
अपना सौभाग्य समझता हूं।
मातृभूमि पर शीश चढ़ाना,
जीवन लक्ष्य समझता हूं।
 
मीरा की भक्ति का भारत,
सीता की त्याग कहानी है।
पन्ना धाय की है ये भूमि,
बलिदानों की अमर कहानी है।
 
आजाद, भगतसिंह के सीने से,
हुंकार उठी आजादी की।
बिस्मिल, अशफाक ने पूरी की,
कसम अंग्रेजों की बर्बादी की।
 
आजादी को हमने पाकर,
उसका मूल्य नहीं जाना है।
मनमानी को ही हमने अब तक,
अपनी स्वतंत्रता माना है।
 
बलिदानों की बलिवेदी पर,
हम शीश चढ़ाना क्या जानें?
भारतमाता के शुभ्र भाल पर,
आरक्त चढ़ाना हम क्या जाने?
 
भारतमाता क्या होती है,
तुम पूछो वीर भगतसिंह से।
त्याग अगर करना चाहो तो,
सीखो शहीद नृसिंहों से।
 
जिस रज में मैंने जन्म लिया,
तन-मन उसको धारे है।
भारतमाता की रक्षा में,
प्राण समर्पण सारे हैं।