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ज़िंदगी उलझी रही
सतपाल ख्याल खौफ़ से सहमी हुई है खून से लथपथ पड़ीअब कोई मरहम करो घायल पड़ी है ज़िंदगी। पुर्जा-पुर्जा उड़ गए कुछ लोग कल बारुद से आज आई है खबर कि अब बढ़ी है चौकसी। किस से अब उम्मीद रक्खें हम हिफ़ाजत की यहाँखेत की ही बाड़ सारा खेत देखो खा गई । यूँ तो हर मुद्दे पे संसद में बहस खासी हुईहल नहीं निकला फ़कत हालात पर चर्चा हुई। कौन अपना दोस्त है और कौन है दुश्मन यहाँबस ये उलझन थी जो सारी ज़िंदगी उलझी रही। अपना ही घर लूटकर खुश हो रहें हैं वो ख्यालआग घर के ही चरागों से है इस घर मे लगी।