हार गले पहना फूलों का, ऋतुपति सकल सुकूत कूलों का स्नेह सरस भर देगा उर-भर, स्मर हर को वरेगी- वसन बासंती लेगी।
मधुव्रत में रत वधू मधुर फल देगी जग को स्वाद-तोष-दल गरलामृत शिव आशुतोष-बल विश्व सकर नेगी- वसन बासंती लेगी।
सखि वसंत आया
सखि वसंत आया भरा हर्ष वन के मन, नवोत्कर्ष छाया। किसलय-वसना नव-वय-लतिका मिली मधुर प्रिय-उर तरु-पतिका मधुप-वृन्द बन्दी- पिक-स्वर नभ सरसाया। लता-मकुल-हार-गन्ध भार भर वही पवन बंद मंद मंदतर जागी नयनों में वन- यौवन की माया। आवृत सरसी-उर-सरसिज उठे केशव के केश कली के छूटे स्वर्ण-शस्य-अञ्चल पृथ्वी का लहराया।