- लाइफ स्टाइल
» - साहित्य
» - काव्य-संसार
आग घर-घर जल रही है
श्रीकांत प्रसाद सिंह कहाँ आ पहुँचे, बटोही !साँप का तो यह शहर है,कहाँ खोजोगेबसेरा ?ब्याल विषघर हर डगर है !नाग-कन्यासुंदरी है,चंचला ! मन-मोहनी है !प्रणय की प्रयासी, वियोगिनीमानिनी ! उन्मादिनी है !मधु प्रणय कीरागिनी क्याबीन पर तुम बजा सकते ?विरह की पीड़ासुरों मेंताल-लय पर सजा सकते ?
शरण-स्थलमिल सकेगा,छरहरी बावली है !नवयौवना यह द्रौपदी-सी श्यामली है!नाग-कन्या के इशारेराज-सत्ता चल रही है,नाग-राजाहै विलासी !आग घर-घर जल रही है।साभार : अक्षरा