शुक्रवार, 22 नवंबर 2024
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Written By रवींद्र व्यास

गिन-गिन तारे मैंने उँगली जलाई है

गुलजार की प्रेम-पतंग मकर संक्रांति पर

गिन-गिन तारे मैंने उँगली जलाई है -
Ravindra VyasWD
फिल्म 'स्लमडॉग मिलियनेयर' के संगीतकार एआर रहमान को गुलजार के गीत 'जय हो' का संगीत देने के लिए गोल्डन ग्लोब पुरस्कार दिया गया है। संगत में पेश है उसी गीत पर कलाकृति।

रोज रात छत पर तारे आते हैं और आँखें झपकाकर कहते हैं कि कह दे। रोज रात चंद्रमा सिर पर आकर खड़ा हो जाता है और मुँह बनाकर कहता है -कह दे। पता नहीं, ये हवाएँ कहाँ से चली आती हैं और हलचल मचाती हुई कह जाती हैं कि कह दे। और तो और अधखुली खिड़की में वह पीला फूल बार-बार झाँककर कहता है कि कह दे।

गुलजार हमारे दिल में दबी और होठों पर रुकी इन्हीं बातों को बहुत सादे लफ्जों में, लेकिन दिलकश अंदाज में बयाँ कर देते हैं। बसंत अभी दूर है लेकिन गुलजार के गीत से बहती हवाएँ हमेशा ही इश्क के मौसम को गुलजार रखती हैं। उनके गीतों की रंगत, अदाएँ और अंगड़ाई अजब-गजब हैं। गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड की वजह से स्लमडॉग मिलियनेयर सुर्खियों में है, लेकिन इसी फिल्म में गुलजार का लिखा गीत "जय हो..." पर किसी का ध्यान नहीं गया है।


मकर संक्रांति के अवसर पर यह गुलजार की मोहक प्रेम-पतंग है। उन्होंने इसे अपनी कल्पना की नर्म-ओ-नाजुक ठुमकियों से उड़ान दी है। उनके पास दिल का ऐसा उचका है, जिसमें मोहब्बत की महीन डोर कभी खत्म नहीं होती है। उनमें इश्क के पेंच लड़ाने की अदाएँ तो हैं लेकिन किसी प्रेम पतंग को काटने की आक्रामकता नहीं। कटना मंजूर है, काटना हरगिज नहीं। इस गीत में भी वे अपनी महीन बात को कहने के लिए कुदरत का एक हसीन दृश्य चुनते हैं, जिसमें तारों भरी रात को वे जरी वाले नीले आसमान में और भी खूबसूरत बना देते हैं। फिर इसी नीले आसमान के नीचे वे जान गँवाने, कोयले पर रात बिताने और तारों से उँगली जलाने की मार्मिक बात कहते हैं। उनकी इस अदा पर कौन न मर जाए। जरा गौर कीजिए-

आजा जरी वाले नीले आसमान के तले/
रत्ती-रत्ती सच्ची मैंने जान गँवाई है/
नाच-नाच कोयलों पे रात बिताई है/
अँखियों की नींद मैंने फूँकों से उड़ा दी/
गिन-गिन तारे मैंने उँगली जलाई है

प्रेम का और विरह का कितना सुंदर ख्याल और किस मारू अंदाज के साथ। गुलजार के गीत रात, आसमान, तारे और चंद्रमा से मिलकर बनते हैं। इस गीत में भी वे हैं, लेकिन अपने शब्दों का महकता हार बनाने के लिए वे शब्दों को फूलों की तरह चुनते हैं। इस गीत में रत्ती-रत्ती, नाच-नाच और गिन-गिन शब्दों के जरिए वे लगभग न पकड़ में आने वाले अमूर्त भावों को कितनी सहजता से अभिव्यक्त कर जाते हैं। और फिर उनकी असल कविता तो सच्ची मैंने जान गँवाई, कोयलों पे रात बिताई और तारे से उँगली जलाई पंक्तियों में जिंदा होती है। ये है अकेलेपन की तड़प, प्रेम की घनी उपस्थिति।

और फिर इसमें रात को शहद मानकर चख लेने की और काले काजल को काला जादू कहने की बातें हैं। लेकिन रुकिए, असल बात तो अब है। आँखें झुकी हैं, और लब पे रुकी बात को कह डालने की यह नाजुक घड़ी है। देखिए तो सही-

कब से हाँ कब से जो लब पे रुकी /
कह दे कह दे हाँ कह दे/
अब आँख झुकी है/
ऐसी-ऐसी रोशन आँखें/
रोशन दोनों हीरे हैं, क्या? /
आजा जिंद नीले शामियाने के तले।
जय हो, जय हो

आँखें झुकी हैं और यह एक हसीन मौका है। इसलिए अपने दिल की , होठों पे रुकी बात कहने की गुजारिश है। इस बार मकर संक्रांति पर गुलजार की यह प्रेम-पतंग कट कर हमारे आँगन में आई है। इसे अपने दिल की डोर से बाँधिए, मोहब्बत से उड़ाइए। हवा भी मेहरबान है और सूरज भी। क्या पता, आप जिसे चाहते हैं, वह भी इस बदलते मौसम में मेहरबान हो जाए।