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इंटरव्‍यू के बदले पैसे मांगने पर साहित्‍य जगत में क्‍यों उठा बवाल?

इंटरव्‍यू के बदले पैसे मांगने पर साहित्‍य जगत में क्‍यों उठा बवाल? - Surendra verma, hindi sahitya, hindi literature
हिंदी साहित्‍य के लेखक हमेशा से तंगहाल रहे हैं। उन्‍हें अक्‍सर आर्थि‍क संकट से जूझना पड़ता रहा है, ऐसे में अगर कोई लेखक अपनी रचना या अपने ऊपर किए जाने वाले शौध के बदले मानदेय की मांग कर ले तो साहित्‍य जगत में न सिर्फ बवाल हो जाता है, बल्‍कि बहस का विषय भी बन जाता है। 'मुझे चांद चाहिए' जैसी मशहूर किताब लिखने वाले लेखक सुरेंद्र वर्मा के साथ भी यही हुआ है।

उन्‍होंने एक पीएचडी करने वाले छात्र से अपना साक्षात्कार देने के बदले 25 हजार रुपए की मांग कर ली। इस पर छात्र ने उन्‍हें पैसे तो नहीं दिए बल्कि उल्‍टा लेखक सुरेंद्र वर्मा से हुई बातचीत की रिकॉर्ड को वायरल कर दिया।

बातचीत की यह क्‍ल‍िप वायरल होते ही साहित्‍य बिरादरी में इस बात को लेकर बहस है कि‍ क्‍या किसी लेखक को अपनी रचना या साक्षात्‍कार के बदले मानदेय की मांग करना चाहिए या नहीं करना चाहिए।
दरअसल, अंग्रेजी लेखकों की तुलना में हिंदी पट्टी के लेखकों के पास हमेशा से किताबों की रायल्‍टी, अपनी रचनाओं के बदले मानदेय आदि बहस का विषय रहा है।

जाहि‍र है सोशल मीड‍ि‍या में इसे लेकर चर्चा होना लाजिमी थी। नए और पुराने लेखक इसे लेकर अपनी राय जाहिर कर रहे हैं। उनका कहना है कि हर लेखक के पास रविंद्रनाथ ठाकुर या तोल्‍सतोय की तरह पुश्‍तैनी जमीन-जायदाद नहीं होती कि वे उनकी तरह निश्‍चिंत होकर लिख सकें।

तोल्सतोय या रवींद्रनाथ ठाकुर की तरह रुपए-पैसे से बेफिक्र होकर लिखने का सौभाग्य हर किसी को नहीं मिलता। ऐसे में लेखकों को इस बात का ध्‍यान रखना ही पड़ता है कि उन्‍हें अपनी लेखन कर्म से कुछ कमाई होती रहे।

लेखि‍का ममता कालिया ने लिखा, हो सकता है या शायद किसी ने ध्‍यान नहीं दिया कि सुरेंद्र वर्मा ने शौध करने वाले छात्र से पिंड छुडाने के लिए पैसे की मांग की हो।  

लेखक रंगनाथ सिंह फेसबुक पर लिखते हैं,
जरूरी नहीं कि हर लेखक सुरेंद्र वर्मा की राह पर चले। सबकी अपनी स्थितियाँ-परिस्थितियाँ होती हैं। अनुपम मिश्र ने शानदार किताबें लिखीं लेकिन उनको कॉपीराइट फ्री कर दिया। निजी तौर पर मुझे जिस तरह का लेखन पसन्द है उसके लिए जरूरी है कि हम अपनी रोजीरोटी को लेखन से अलग रखें। लेकिन अंततोगत्वा यह लेखक का चुनाव है कि वो कौन सा रास्ता चुनना चाहता है। जीवनयापन के लिए एक निश्चित आमदनी तो हर किसी को चाहिए।

लेखि‍का गीताश्री लिखती हैं, शोधार्थियों से पैसा मांगना ग़लत है। बिल्कुल ग़लत। तो क्या लेखक से विषय मांगना, सिनोप्सिस बनाने का आग्रह करना, सारी सामग्री, किताबें भेजने का आग्रह करना… पचास पेज का लिखित इंटरव्यू मांगना…. ये सब सही है?

बता दें कि सुरेंद्र वर्मा हिंदी के लोकप्र‍िय लेखक हैं, अंधेरे से परे, बम्बई भित्त लेख, मुझे चांद चाहिए, दो मुर्दों के लिए गुलदस्ता, काटना शमी का वृक्ष पद्य पंखुरी की धार से आदि उनके उपन्यास हैं। उन्‍होंने कई नाटक और कहानियां भी लिखीं हैं।
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