तीन दिवसीय इंदौर लिट्रेचर फेस्टिवल का शुभारंभ
इंदौर शहर की गुलाबी बयार में साहित्य और संस्कृति घुली है। जयपुर लिट्रेचर फेस्टिवल की तर्ज पर यहां इंदौर लिट्रेचर फेस्टिवल का आयोजन लगातार हो रहा है। इस बार यह भव्य आयोजन 16 दिसंबर से 18 दिसंबर तक होटल फॉर्च्यून लैंडमार्क में किया जा रहा है।
देश भर के जाने माने साहित्यकार और विचारक इसमें शामिल हो रहे हैं। तीन दिवसीय इस साहित्य महोत्सव में लेखन संसार की कई विभूतियां अपने प्रशंसकों से रूबरू होंगी। सभी अपनी रचना प्रक्रिया के अलावा ज्वलंत और सामयिक मुद्दों पर खुल कर बोलेंगे। कार्यक्रम की परिकल्पना और प्रस्तुति हैलो हिंदुस्तान की है। दैनिक भास्कर सह प्रयोजक हैं।
साहित्य महोत्सव का आगाज सुप्रसिद्द साहित्यकार गोपाल दास नीरज की महफिल से हुआ। गीत गुमसुम है, ग़ज़ल चुप है नामक इस महफिल में कवि सरोज कुमार ने नीरज के जीवन, रचनाकर्म और संघर्ष पर चर्चा की। बीच-बीच में नीरज ने अपने गीतों और दोहों से आकर्षक समां बांध दिया। हर लंबे सवाल का जवाब नीरज ने बड़ी ही खूबसूरती से सारगर्भित दोहों में दिया। नीरज ने अपनी प्रिय रचना 'कारवां गुजर गया' के स्थान पर 'छुप-छुप अश्रु बहाने वालों, कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है' रचना को बताया।
अपनी बात को इस दोहे के साथ उन्होंने विराम दिया कि -
''ज्ञानी हो फिर भी न कर दुर्जन संग निवास,
सर्प सर्प है भले ही मणि हो उसके पास''
कार्यक्रम की रूपरेखा