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Last Updated : शुक्रवार, 24 दिसंबर 2021 (16:30 IST)

ऐसी थी डॉ धर्मवीर भारती की जिंदगी और उनकी लेखन यात्रा

ऐसी थी डॉ धर्मवीर भारती की जिंदगी और उनकी लेखन यात्रा - Dr dharmvir bharti, about Dr dharmvir bharti, hindi writer
डॉ धर्मवीर भारती का जन्म 25 दिसंबर, 1926 को इलाहाबाद के अतरसुइया मुहल्ले में हुआ था। इनके पिता चिरंजीव लाल वर्मा और मां का नाम माता चंदा देवी था।

परिवार में शुरू से ही आर्य समाज का प्रभाव था, जिसकी वजह से धर्मवीर भारती के ऊपर धार्मिकता का गहरा प्रभाव पड़ा। शिक्षा इलाहाबाद के डीएवी कॉलेज एवं उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हुई।

इनके पिता का निधन हो गया, जिस कारण इन्हे बहुत अधिक आर्थिक संकट से जूझना पड़ा। अपने आर्थिक विकास के लिए मार्क्स के सिद्धांत को आदर्श मानते थे, लेकिन यह भी इनके लिए बहुत कारगार सिद्ध नहीं हुआ। कुछ दिनों तक उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के तौर पर काम किया।

1959 से 1987 तक उन्होंने मुंबई से प्रकाशित होने वाली हिंदी की सुप्रसिद्ध साप्ताहिक पत्रिका 'धर्मयुग' का संपादन किया। डॉ धर्मवीर भारती को केवल दो प्रकार के शौक थे यात्रा और अध्यापन। आजीवन काल तक उन्होंने अपने इन दो शौकों को जिंदा रखा।

1972 में भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वश्रेष्ठ पुरस्कारों में से एक पद्मश्री दिया। धर्मवीर भारती की रचनाओं में काव्य, कथा तथा नाटक का समावेश मिलता है। इनकी कविताओं में रागतत्व की रमणीयता के साथ बौधिक उत्कर्ष की आभा का भी पुट दिखायी देता है।

डॉ धर्मवीर भारती सफल संपादक थे, कवि थे, उपन्यासकार और साहित्यकार भी थे। संपादक के रूप में तो वे अपने जैसे अकेले माने जा सकते हैं। वह धर्म, राजनीति, साहित्य, फिल्म और कला ही क्यों न हो, उनसे कोई भी विषय अछूता नहीं था।

डॉ धर्मवीर भारती ने अपने जीवन काल में न केवल हिंदी पत्रकारिता को ही समृद्धि प्रदान कराने में अपनी अहम भूमिका निभायी, बल्कि समान रूप से उन्होंने हिंदी साहित्य को भी समृद्ध बनाने में समय दिया। 'कनुप्रिया', 'गुनाहों का देवता', 'ठंडा लोहा', 'अंधायुग', 'सात गीत वर्ष', 'सूरज का सातवां घोड़ा', 'मानस मूल्य', 'साहित्य', 'नदी प्यासी', 'कहनी- अनकहनी', 'ठेले पर हिमालय', 'परयान्ति' और 'देशांतर' उनकी कालजयी रचनाओं में से एक है। इन रचनाओं में 'सूरज का सातवां घोड़ा' ने उनकी सदाबहार रचना के रूप में प्रसिद्धि पायी, तो 'गुनाहों का देवता' एक अनोखा प्रयोग माना जाता है।

1990 के दशक में तीन गंभीर हार्ट अटैक आने के बाद उनके दिल को रिवाइव करने के लिए 700 वोल्ट के शॉक दिये गये थे। इससे उनकी जिंदगी तो बच गयी, लेकिन उनके दिल को क्षति पहुंची थी। 4 सितंबर, 1997 को उनका देहावसान हो गया।
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