विभाजन की त्रासदी का दस्तावेज है 'कुलभूषण का नाम दर्ज कीजिए'
अलका सरावगी अपने लेखन के लिए जानी जाती हैं। उनका नया उपन्यास आया है जिसका नाम है कुलभूषण का नाम दर्ज कीजिए
इस उपन्यास में विभाजन की स्मृति है। दरअसल, यह कहानी कोलकाता से शुरू होती है, लेकिन कहानी है बांग्लादेश के कुष्टिया जिले की, जहां से पहले 1947 में और फिर 1971 में हिंदू परिवार भाग कर कोलकाता आ रहे हैं।
कुष्टिया में व्यापार और सौदे में बहुत होशियार माना जाने वाला कुलभूषण कोलकाता आकर मानो बिखर जाता है।
वाणी प्रकाशन से छपकर आया यह उपन्यास पाठकों को बांधे रखता है। यह उपन्यास बाजार में उपलब्ध है और पाठकों के साथ ही सोशल मीडिया में भी इस किताब की चर्चा हो रही है।
कौन हैं अलका सरावगी
अलका सरावगी हिन्दी की प्रसिद्ध कथाकार हैं। वे साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी हैं। कोलकाता में जन्मी अलका ने हिन्दी साहित्य में एमए और रघुवीर सहाय के कृतित्व विषय पर पीएचडी की उपाधि हासिल की है। “कलिकथा वाया बाइपास” उनका चर्चित उपन्यास है, जो अनेक भाषाओं में ट्रांसलेट हो चुका हैं। अलका का पहला कहानी संग्रह 1996 में कहानियों की तलाश में आया। इसके बाद ही उनका पहला उपन्यास काली कथा, वाया बायपास शीर्षक से प्रकाशित हुआ।