नज़्म: टपकती छतें...
बारिश में टपकती छतें
भिगो देती हैं
घर का हर छोटा-बड़ा सामान
न कोई कपड़ा सूखा रहता है
और न ही चूल्हा-चौका
ऐसे में
घर के सामान को बचाने की जद्दोजहद में
इंसान ख़ुद भी भीग जाता है
सबसे ज़्यादा मुश्किल होता है
बच्चों को भीगने से बचाना
भूखे बच्चों को खाना पकाकर खिलाना
वाक़ई बहुत दुश्वार होता है
कमरे में बरसती बारिश से ख़ुद को बचाना
बेशक बारिश रहमत है
लेकिन
ग़ुरबत के मारे ग़रीबों के लिए
बारिशें किसी आफ़त से कहां कम हैं...।
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