साहित्य अकादमी से सम्मानित लेखिका चित्रा मुद्गल: वो 15 बातें जो उन्हें बनाती हैं बेहद खास
चित्रा मुद्गल हिंदी साहित्य जगत की प्रतिष्ठित लेखिका हैं। 10 दिसंबर 1944 को उनका जन्म हुआ था। उनके उपन्यास 'आवां' को इंग्लैंड का 'इन्दु शर्मा कथा सम्मान पुरस्कार' और दिल्ली अकादमी का 'हिन्दी साहित्यकार सम्मान पुरस्कार' भी मिल चुके हैं।
उनको 2010 में 'उदयराज सिंह स्मृति पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था। उन्हें 2018 का हिन्दी भाषा का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल चुका है। आइए जानते हैं उनके बारे में 15 ऐसी बातें जो उन्हें एक लेखक के तौर पर बनाती है बेहद खास।
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चित्रा मुद्गल (जन्म: 1944) हिन्दी की वरिष्ठ कथालेखिका हैं।
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उन्हें सन 2018 का हिन्दी भाषा का साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया है।
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उनके उपन्यास 'आवां' पर उन्हें वर्ष 2003 में 'व्यास सम्मान' मिला था। उनका जीवन किसी रोमांचक प्रेम-कथा से कम नहीं है।
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चित्राजी की साहित्यिक यात्रा साल 1964 से शुरू हुई थी।
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उन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं के लिए कहानी, लेख, रिपोर्ट, कविता, समाचार आदि का लेखन किया जो धर्मयुग, हंस, रसरंग, पराग, सबरंग, माधुरी, सारिका, जनसत्ता, नवभारत टाइम्स आदि में निरंतर प्रकाशित होता रहा।
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शुरू में पत्र-पत्रिकाओं में लेखन कार्य विशेष कर कहानी लेखन के लिए तो उन्हें अपने ही परिवार वालों से बहुत संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने एक बार कहा था,—“बाकी सारी दुनिया पर लिखो पर खानदान की ओर अपनी उंगली कभी नहीं उठनी चाहिए, वरना....परिणाम बहुत बुरा होगा।”
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उनके कथा साहित्य में व्यवस्था का क्रूर, अमानवीय और जनविरोधी चरित्र बार-बार उभरता है। चित्राजी ने आवां, गिलिगडु, एक ज़मीन अपनी, दि क्रसिड़ आदि उपन्यास लिखे हैं।
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उन्होंने माधवी कन्नगी, मनीमैखले, जीवन चिंतामनी नामक बाल उपन्यास भी लिखे हैं।
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चित्राजी ने गुजराती, मराठी, अंग्रेज़ी, पंजाबी, आसामी तथा तमिल भाषाओँ से कहानियां हिन्दी में अनुवादित भी की हैं। उन की गुजरात की श्रेष्ठ व्यंग्य कथाएं नामक पुस्तक बहुचर्चित है।
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चित्राजी के जहर ठहरा हुआ, लाक्षागृह, अपनी वापसी, इस इमाम में, ग्यारह लंबी कहानियां, जंगदब बाबू गांव आ रहे हैं, चर्चित कहानियां, मामला आगे बढेगा अभी, जीनावर, केंचुल, भूख, बयान, लपटे, आदि-अनादि (3 भाग) आदि कहानी संग्रह लिखे हैं।
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उन्होंने नाटक, शिक्षा संस्थानों में अध्ययनार्थ साहित्य, दूरदर्शन में कई धारावाहिक सीरियल का निर्माण, फिल्म निर्माण में योगदान आदि सभी में अपनी कार्यकुशलता दिखाई है।
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चित्राजी ने भारतीय नारी को बहुत निकटता से देखा है। उन का यह मानना है कि भारतीय समाज में नारी का स्थान हमेशा दोयम दर्जे का रहा है।
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चित्राजी इस स्थिति को तोडना चाहती हैं। उन का संकल्प स्त्री को दोयम दर्जे की स्थिति को समाप्त करके हमारे भारतीय समाज में उसे पुरुष के समकक्ष स्थान दिलाना है। यही मूल स्वर उन के कथा साहित्य में मिलता है।
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चित्राजी का विवाह साहित्य में रूचि रखने वाले अवधनारायण मुद्गल के साथ हुआ था, उनका प्रेम विवाह था।
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अवधनारायण ब्राह्मण थे और चित्राजी ठाकुर। चित्राजी के पिताजी तथा घर वालों को यह विवाह बिलकुल स्वीकार्य नहीं था। अतः चित्राजी को अपना घर छोड़ना पड़ा।