शरद की बिदाई, हेमंत का आगमन
साहित्य में ऋतु-वर्णन
अनिता मोदी मेघदूत पर लिखी कविता में हरिवंशराय बच्चन ने कहा है - हो धरणि चाहे शरद की, चाँदनी में स्नान करती। वायु ऋतु हेमंत की, चाहे गगन में विचरती। मैं स्वयं बन मेघ जाता...हेमंत में तुषार (पाला) से पूरा वातावरण ढँक जाता है। ठंडी हवाएँ चलना प्रारंभ हो जाती हैं। तापमान गिरने लगता है। दिशाएँ धूल धुसरित होती हैं। सूरज कोहरे से आच्छादित रहता है। प्रियंगु और नागकेसर के वृक्ष फूलने-फलने लगते हैं और हरसिंगार, धतुरा, गेंदा, कचनार, मधुमालती आदि बहार पर होते हैं। छः ऋतुओं का देश भारत उन गिने-चुने देशों में है जहाँ वर्षभर मौसम संवेदनशील और लचीला होता है। करवटें लेता है और सभी तरह के परिवर्तनों का अनुभव प्राणी जीवन को हो जाता है। अनेक देश ऐसे भी हैं जहाँ वर्षभर कड़क सर्दी ही पड़ती है तो कुछ ऐसे हैं जहाँ सर्दी पड़ती ही नहीं। इन छः ऋतुओं ने समूचे देश को जनजीवन के वैविध्य के सतरंगी ताने-बाने में सदियों से दुलारा है।
प्रकृति, ऋतु-वर्णन और साहित्य महाकाव्य रचनाकाल से प्रकृति वर्णन, ऋतु वर्णन आदि की परंपरा का सूत्रपात हो चुका था। दक्षिण दिशिचारी रवि से - है उत्तर दिशाविहीन, तिलकहीन बाला सी उसकी हुई कांति छविहीन। (हेमंत वर्णन। रामायण) प्राचीन कवियों ने षड्ऋतु वर्णन और बारहमासा लिखकर कविता प्रेमियों को अपने-अपने ढंग से रसाभिसिक्त किया है। महाकवि कालिदास का अमर ग्रंथ ऋतुसंहारम् छहों ऋतुओं का इतना अनूठा वर्णन कर अमर हो गया कि उसके हजारों अनुवाद विश्व की सैकड़ों भाषाओं में उपलब्ध हैं। ऋतुसंहारम् में महाकवि कालिदास ने हेमंत ऋतु का वर्णन कुछ यूँ किया है-नवप्रवालोद्रमसस्यरम्यः प्रफुल्लोध्रः परिपक्वशालिः।विलीनपद्म प्रपतत्तुषारोः हेमंतकालः समुपागता-यम्॥ अर्थात बीज अंकुरित हो जाते हैं, लोध्र पर फूल आ चुके हैं धान पक गया और कटने को तैयार है, लेकिन कमल नहीं दिखाई देते हैं और स्त्रियों को श्रृंगार के लिए अन्य पुष्पों का उपयोग करना पड़ता है। ओस की बूँदें गिरने लगी हैं और यह समय पूर्व शीतकाल है। महिलाएँ चंदन का उबटन और सुगंध उपयोग करती हैं। खेत और सरोवर देख लोगों के दिल हर्षित हो जाते हैं।जयपुर की रजाई हेमंत ऋतु के लिए देश में प्रसिद्घ है। राजस्थान में तो लोक मानस जाड़े की अनेक मधुर कल्पनाओं से सुरूचित साहित्य रचता रहा है। राजस्थानी में शीतकाल को सियाला कहते हैं। नायिका सियाले में अकेले नहीं रहना चाहती। वह नायक को परदेश जाने से रोकती है "अकेले मत छोड़ोजी सियाला में।" रचनाकार मलिक मोहम्मद जायसी ने षट् ऋतु वर्णन खंड में कुछ यूँ कहा है - ऋतु हेमंत संग पिएउ पियाला। अगहन पूस सीत सुख-काला॥ धनि औ पिउ महँ सीउ सोहागा। दुहुँन्ह अंग एकै मिलि लागा।स्वास्थ्यप्रद मौसम आयुर्वेद में हेमंत ऋतु को सेहत बनाने की ऋतु कहा गया है। हेमंत में शरीर के दोष शांत स्थिति में होते हैं। अग्नि उच्च होती है इसलिए वर्ष का यह सबसे स्वास्थ्यप्रद मौसम होता है, जिसमें भरपूर ऊर्जा, शरीर की उच्च प्रतिरक्षा शक्ति तथा अग्नि चिकित्सकों को छुट्टी पर भेज देती है। इस ऋतु में शरीर की तेल मालिश और गर्म जल से स्नान की आवश्यकता महसूस होती है। कसरत और अच्छी मात्रा में खठ्ठा-मीठा और नमकीन खाद्य शरीर की अग्नि को बढ़ाते हैं। हेमंत ऋतु में शीत वायु के लगने से अग्नि वृद्घि होती है। चरक ने कहा है -"
शीते शीतानिलस्पर्शसंरुद्घो बलिनां बलीः।पक्ता भवति..."शरद के बाद इस ऋतु में मौसम सुहावना होता है। जलवायु अच्छी होती है। तेज धूप से कीड़े-मकोड़ों का संहार हो जाता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह उत्तम समय होता है। छः-छः मास के दो आयन होते हैं। दक्षिणायन में पावस, शरद और हेमंत ऋतु तथा शिशिर, बसंत तथा ग्रीष्म उत्तरायन की ऋतुएँ हैं। (
सौजन्य : नईदुनिया, उज्जैन)