मंगलवार, 26 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. नन्ही दुनिया
  3. निबंध
  4. sharad purnima essay
Written By

शरद पूर्णिमा पर निबंध

शरद पूर्णिमा पर निबंध। sharad purnima par nibandh - sharad purnima essay
आश्‍विन माह में आने वाली शरद पूर्णिमा हिन्दुओं का एक प्रसिद्ध त्योहार है। शारदीय नवरात्रि पर्व के बाद की पूर्णिमा को ही 'शरद पूर्णिमा' कहा जाता है।
 
दूध का सेवन : मान्यता है कि आश्विन शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली पूर्णिमा के दिन चंद्रमा से अमृत वर्षा होती है। इस दिन आकाश में चंद्रमा हल्के नीले रंग का दिखाई देता है। कहते हैं कि इस दिन रात में खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखकर सुबह उसका सेवन करने से सभी रोग दूर हो जाते हैं।
 
लक्ष्मी पूजन : ऐसी मान्यता है कि माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसलिए देश के कई हिस्सों में शरद पूर्णिमा को लक्ष्मी पूजन किया जाता है। शरद पूर्णिमा को कोजागौरी लोक्खी (देवी लक्ष्मी) की पूजा की जाती है।

नवरात्रि में मां दुर्गा की स्तुति के बाद अगले वर्ष आर्थिक सुदृढ़ता की कामना के लिए शरद पूर्णिमा के दिन सायंकाल मां लक्ष्मी की पूजा होती है। मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने वाला कारीगर ही लक्ष्मी की प्रतिमा बनाते हैं। पुरानी लक्ष्मी प्रतिमा का विसर्जन करके नई प्रतिमा को अगले वर्ष तक संभालकर रखा जाता है। मां लक्ष्मी को पांच तरह के फल व सब्जियों के साथ नारियल भी अर्पित किया जाता है। मंदिरों में भी विशेष पूजा-अर्चना होती है।

 
पूजा में लक्ष्मीजी की प्रतिमा के अलावा कलश, धूप, दुर्वा, कमल का पुष्प, हर्तकी, कौड़ी, आरी (छोटा सूपड़ा), धान, सिंदूर व नारियल के लड्डू प्रमुख होते हैं। जहां तक बात पूजन विधि की है तो इसमें रंगोली और उल्लू ध्वनि का विशेष स्थान है।
 
जब द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ, तब मां लक्ष्मी राधा रूप में अवतरित हुईं। भगवान श्री कृष्ण और राधा की अद्भुत रासलीला का आरंभ भी शरद पूर्णिमा के दिन माना जाता है।

 
शैव भक्तों के लिए शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कुमार कार्तिकेय का जन्म भी शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसी कारण से इसे कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है।
 
पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में इस दिन कुमारी कन्याएं प्रातः काल स्नान करके सूर्य और चन्द्रमा की पूजा करती हैं। माना जाता है कि इससे उन्हें योग्य पति की प्राप्त होती है।
 
अनादिकाल से चली आ रही प्रथा का आज फिर निर्वाह किया जाएगा। स्वास्थ्य और अमृत्व की चाह में एक बार फिर खीर आदि को शरद-चंद्र की चांदनी में रखा जाएगा और प्रसाद स्वरूप इसका सेवन किया जाएगा।
ये भी पढ़ें
शरद पूर्णिमा विशेष : मेवा और खसखस की खीर