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Written By WD Feature Desk

Bhogi Pandigai Festival Essay: भोगी पण्डिगाई पर निबंध

Bhogi Pandigai Festival Essay: भोगी पण्डिगाई पर निबंध - Essay on Bhogi Pandigai
Bhogi Pandigai 
 

Bhogi Pandigai Essay: भोगी का त्योहार बारिश और बादलों के देवता भगवान इंद्र को समर्पित है। इस दिन, किसान भूमि को समृद्धि, धन और अच्छी बारिश का आशीर्वाद देने के लिए भगवान इंद्र की पूजा करते हैं।

मान्यतानुसार भोगी पांडिगई यानी भोगी त्योहार भगवान इंद्रदेव के सम्मान में मनाया जाने वाला पर्व भी कहा जाता है, जिसे बारिश के देवता के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन किसानों द्वारा भगवान इंद्रदेव का पूजन किया जाता है ताकि वे धरती पर धन-समृद्धि और खुशी लाएं। साथ ही इस दिन हल और दूसरे कृषि उपकरणों की भी पूजा भी की जाती है। 
 
भोगी पांडिगई के अन्य नाम भोगी तथा पंजाब और उत्तर भारत के अन्य भागों में इसे लोहड़ी और असम में माघी बिहू या भोगली बिहू के नामो से भी जाना जाता है। भोगी परंपरा के अनुसार इस दिन लोग घरों की साफ-सफाई करके उसे गेंदे के पुष्प, आम के पत्तों तथा नई चीजों से सजाया जाता है और अपने घर की सभी पुरानी चीजों को त्याग करके एक नए युग की शुरुआत करते हैं। तथा खेती से ताजे कटे हुए चावल के आटे का पेस्ट और लाल निशान के साथ फूलों की डिजाइन यानी ‘कोलम’ कहे जाने वाले फूलों को परंपरानुसार घर की महिलाओं द्वारा बनाए जाते हैं। 
 
मकर संक्रांति एकमात्र ऐसा पर्व है जो संपूर्ण भारतभर में एक साथ मनाया जाता है। हालांकि कई प्रांतों में इस पर्व का नाम और मनाने के तरीके भिन्न-भिन्न है। इसी तरह भोगी पण्डिगाई मकर संक्रांति का ही एक उत्सव है जिसे आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु में बड़े ही उत्साह के साथ 4 दिनों तक मनाया जाता है। भोगी पण्डिगाई में 4 दिनों के दौरान हर दिन कुछ विशेष अनुष्ठानों का पालन किया जाता है। 
 
जैसे- 
1. पहले दिन यानी मकर संक्रांति के एक दिन पूर्व भोगी पण्डिगाई का अनुष्ठान होता है।
2. दूसरे दिन मकर संक्रांति को ही पोंगल, पोड्डा या पाण्डुगा के रूप में मनाया जाता है। 
3. तीसरे दिन तमिलनाडु में मट्टू पोंगल और आंध्र तेलंगाना में कनुमा पाण्डुगा मनाते हैं। 
4. चौथे दिन तमिलनाडु में कानुम पोंगल और आंध्र में मुक्कानुमा के नाम से यह अनुष्ठान संपन्न किया जाता है।
 
भोगी मंटालू में प्रात: के समय विशेष प्रकार का अलाव जलाकर इसमें अनुपयोगी तथा पुरानी चीजों को अग्नि में डालते हैं। इस अवसर पर लोग सुबह-सुबह पटाखे भी जलाते हैं।
 
भोगी पल्लू के दौरान बच्चे रंगबिरंगी पोशाक पहनते हैं तथा कन्याएं एक पारंपरिक वस्त्र लंगा-वोनी पहनती हैं। भोगी पल्लू के अवसर पर खास तौर पर 3 से 6 साल के बच्चों को बुरी नजर से बचाने के लिए रेगी पल्लू/ बेर, सेनागलु/ भिगोया और सूखा काला चना, गन्ने के टुकड़े, गुड़, फूल की पंखुड़ियां तथा सिक्कों का मिश्रण मिलाकर बौछार करते हैं, इससे बच्चे सुखी और दीर्घायु रहते हैं। 
 
भोगी पर्व के अवसर पर रंगोली प्रतियोगिताओं का आयोजन होता है। घर पर बोम्माला-कोलुवू प्रदर्शित करते हैं, जिसमें एक बहुस्तरीय मंच बनाकर उस पर विभिन्न देवी-देवताओं व मिट्‍टी के खिलौनों को सजाया जाता है। इस दौरान रेगी पल्लू प्रथा के अतिरिक्त, बच्चों के लिए अरिसेलु अडुगुलु का भी आयोजन किया जाता है, जो कि एक प्रकार का मीठा भोजन होता है। 
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