बिन माँ की बच्ची एक अमानत
निद्रालीन समाज को झकझोरता उपन्यास
स्वर्णशेखर सिन्हा नंदलाल भारती एक युवा उपन्यासकार के रूप में इस हिन्दी साहित्य के अकाल समय में आशा की किरण के रूप में आए हैं। एक सुगंधित वायु का झोंका जो आकुल हृदय को आराम पहुँचाता है, ऐसा प्रतीत हुआ।उम्र के साथ उनकी लेखनी में और ओज, गहराई एवं सुस्पष्टता आएगी ऐसी आशा है। 'अमानत' शीर्षक ही उपन्यासकार की विषयवस्तु पर गहराई से पकड़ को स्पष्ट करती है। साथ ही साथ बिन माँ की बच्चियों की जिस पीड़ा का उन्होंने उल्लेख किया है जैसे कि प्रसव वेदना उनकी अपनी है।बिन माँ की बच्ची आज परिवार, समाज में किन अवस्थाओं से गुजरती है जिसे अमानत समझकर ही उनके समस्त सामाजिक कार्य का संपादन नाना-नानी के घर पर किया जाता है। यह प्रभाव मार्मिक बन पड़ा है। इस समस्या का परिवार, समाज पर क्या प्रभाव पड़ा है, इसे जाना जा सकता है।सच्चिदानंद तथा धनवंती जैसे पात्र को नौकरी के लिए भटकना एवं उस दौरान घर तथा बाहरी लोगों के द्वारा अपमानित होना सामाजिक उदासीनता को बताता है। अन्य पात्र मीठु एवं सुमारी उपन्यास की कहानी को साथ लिए जीते हैं एवं सामाजिक पैबंद भी उनकी आँखों से देखा जा सकता है, उनकी पीड़ा समझी जा सकती है।शादी-ब्याह वैसे भी समाज में विशेषकर लड़कियों के लिए एक दुरूह कार्य है एवं अगर यह बिन माँ की बच्चियों के लिए हो तो सामाजिक दुस्साहस का कहना ही क्या। |
बिन माँ की बच्ची आज परिवार, समाज में किन अवस्थाओं से गुजरती है जिसे अमानत समझकर ही उनके समस्त सामाजिक कार्य का संपादन नाना-नानी के घर पर किया जाता है। यह प्रभाव मार्मिक बन पड़ा है ... |
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यह सारी भावनाएँ इस उपन्यासकार ने बड़ी ही सरलता से बताकर यह संदेश दिया है कि अभी भी वैसे लोग ग्रामीण समाज के भाईचारे को जिंदा रखे हुए हैं जो औरों की समस्या को भी अपनत्व के साथ अपना समझकर पूरा करते हैं।लेखक का यह उपन्यास ग्रामीण जीवन को उसकी अच्छाइयों को, उसकी बुराइयों को बेबाक होकर बताता है तथा उसके सुधार हेतु उसके अंदर कितनी उद्विग्नता एवं बेचैनी है, बतलाता है । अत: निद्रालीन समाज को झकझोरना एवं उसमें स्पंदन पैदा करना भी नंदलाल भारती जी का प्रयास अमानत के माध्यम से वंदनीय है। साथ में उपन्यास में समरसता, उपन्यास को पठनीय बनाती है। छपाई, सफाई एवं आवरण पृष्ठ भी उपन्यास को आकर्षक बनाने में सहायक तथा कामयाब रहा है। भारती जी को साधुवाद तथा उम्मीद है कि आगे भी इस लौ को निरंतर जलाए रखेंगे।उपन्यास : अमानत लेखक : नन्दलालराम भारती प्रकाशक : इंडियन सोसाइटी ऑफ ऑथर्स इंदौर चैप्टर69/2,ए - गोयल नगर, इंदौर मूल्य : 150 रू.