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पुस्तक समीक्षा: 'सफ़र संघर्षों का'

पुस्तक समीक्षा: 'सफ़र संघर्षों का' - poem book review
'सफ़र संघर्षों का' काव्य संग्रह प्रथम काव्य 'वह बजाती ढोल' का द्वितीय भाग है जिसमें मां के संघर्ष की व्यथा को शाब्दिक काव्यात्मक रूप में अपनी भावना को बड़े ही मार्मिक ढंग पेश किया है क्षेत्र के लब्ध शिक्षाविद् एवं भाषाविद् कारूलाल जमड़ा ने।
 
इनका प्रथम काव्य संग्रह 'वह बजाती ढोल' इतना अधिक लोकप्रिय हुआ कि उसका अन्य भाषा में अनुवाद कर प्रकाशित किया गया। यह किसी भी लेखक के लिए गौरव की बात होती है।
 
'सफ़र संघर्षों का' काव्य संग्रह सिर्फ एक मां की काव्य-कथा नहीं है, बल्कि यह उन हजारों- लाखों 'मांओं' की जीवंत दशा को काव्य रूप में ढालने की अपने आप में एक मिसाल है। इस संग्रह में 4 खंड हैं।
 
प्रथम खंड 'संस्मरण' में अपनी यादों को संजोया गया है। इसमें 17 काव्य अभिव्यक्तियां हैं- 'यादें अपने गांव की', 'वह बजाती ढोल', 'बूढ़ी हो गई मेरी मां' शीर्षक वाली रचना भावुक कर देती है। यह एक ऐसा चित्र खींचती है कि मन को झंकृत कर देती है।
 
द्वितीय खंड में 'स्ववेदना' में 19 रचनाएं हैं जिसमें लेखक ने वेदना के अंतिम छोर को छूने का प्रयास किया है। इसने 'मां के काम', 'पिताजी खांस रहे हैं', 'कामवाली बाई' और 'इंसान की कदर करो भाई' में वेदना के भाव को बखूबी व्यक्त किया है।
 
तृतीय भाग में 'स्वानुभूति' में लेखक ने अपनी अनुभूतियों को शब्दों में उकेरा है। 'बेटी बनकर देखो', 'सच का सपना', 'तुम निंदक' और 'मां को बुखार' जैसी रचना ने वेदना का जो स्वर दिया है, वह सोचने को मजबूर करता है और विचारणीय भी है।
 
चतुर्थ भाग में 'स्वचिंतन' है जिसमें 'खूंटी पर टांगो स्वाभिमान', 'बहुओं के पदक बाकी हैं', 'आत्महत्या मत करो' और 'इंसान की कदर करो' जैसी रचना लेखक की गहन-गंभीर चिंतनशीलता को प्रदर्शित करती है। 'संस्मरण', 'स्ववेदना', 'स्वानुभूति' और 'स्वचिंतन' इस काव्य-संग्रह की आत्मा है।
 
रचनाकार ने सरल और सहज शब्दों में सृजन कर एक दुरूह कार्य को रोचक ढंग से प्रतिपादित किया है। यही इसकी मुख्य विशेषता है। यह उम्दा व भावप्रधान रचनाओं से परिपूर्ण संग्रह है। इसमें लगभग 80 कविताएं हैं, जो हर विषय को छूती हैं। चिंतन और मनन के माध्यम से जो ताना-बाना बुना गया, वह काबिले तारीफ है। उसे बिना लाग-लपेट के सरलता से व्यक्त करना उत्कृष्ट रचनाकार की छवि दिखाता है।
 
इस संग्रह में भूमिका 'यह मन्यु जीवित रहे कारूलाल का लेखन' राष्ट्रीय कवि बालकवि बैरागीजी ने व्यक्त की, जिसका शब्द-शब्द अपने आप में अनूठा है। इसे पढ़े बिना पुस्तक को पढ़ना अधूरा रहेगा। आवरण अति सुन्दर है, जो संघर्ष की व्यथा बयां करता है, जो संग्रह के अनुरूप है।
 
यह काव्य संग्रह अपने आप में पूर्णता लिए हुए है। संग्रह के मूल्‍यांकन का अधिकार तो पाठकों को है ही। 

कृति- सफ़र संघर्षों का
विधा- कविता
प्रकाशक- बोधि प्रकाशन 
मूल्य- 200/-
संजय जोशी 'सजग'
सादर प्रकाशनार्थ
 
 
 
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