''आर्त स्वर में सीता ने जोर से आवाज लगाई- 'भैया जटायु, मेरा अपहरण हो रहा है, मेरी रक्षा करो। नम आँखों तथा लाचारी से भरी आवाज में जटायु ने कहा - माते, आपके आसपास तो रावण ही रावण हैं। मैं किस-किस से आपकी रक्षा करूँ? ''
यह किसी कथा का अंश नहीं बल्कि एक लघुकथा है और यह लघुकथा समकालीन सौ लघुकथाएँ पुस्तक में से एक है।
यह सिर्फ एक कथा नहीं बल्कि हमारी समाज की वास्तविकता का वर्णन है। सौ लघुकथाएँ नामक इस पुस्तक में समाज की इसी तरह की बुराइयों पर कटाक्ष किया गया है।
जीवन की सच्चाई से जुड़ी यह पुस्तक कहीं किसी गरीब की मजबूरी को दिखाती है तो उसी समय रसूखदारों के समाज में दबदबे को भी चित्रित करती है। लेखक ने पात्रों को अपने आसपास से ही चुना है साथ ही भाषा का चयन पात्रों और परिस्थिति के अनुरूप किया है जिससे कहानियों से पाठक का जुड़ाव बरबस ही हो जाता है।
समाज में रह रहे हर व्यक्ति की मनोदशा का सही चित्रण है सौ लघुकथाएँ। मध्यमवर्गीय जीवन को अपने शब्दों में लेखक ने बड़े ही खूबसूरत तरीके से पिरोया है।
सौ लघुकथाओं के संकलन से मिलकर बनी पुस्तक सौ लघुकथाएँ जीवन के कुछ ऐसे पलों से पाठक को रूबरू करवाती है जिन पर उसका ध्यान यदाकदा ही जाता है। पुस्तक में कम शब्दों में लेखक ने जीवन के छोटे-छोटे पलों को जीवंत किया है।
समाज में रह रहे हर व्यक्ति की मनोदशा का सही चित्रण है सौ लघुकथाएँ। मध्यमवर्गीय जीवन को अपने शब्दों में लेखक ने बड़े ही खूबसूरत तरीके से पिरोया है...
इन लघुकथाओं में लेखक ने जो चरित्र चित्रण किया है वह भी जीवंत ही है। इस संकलन में पाठक को हर स्तर की कथाएँ मिलती हैं।
समाज के हर तबके और राजनीतिक वातावरण पर इन कथाओं के माध्यम से प्रहार करते हुए लेखक सोचने पर मजबूर करता है कि क्या समाज वाकई में प्रगति कर रहा है या सिर्फ दिखावे की चादर ओढ़े हम बस विकसित और मॉडर्न होने का ढोंग कर रहे हैं।
अपने आप में मार्मिकता लिए हमारी सामाजिक व्यवस्था पर कटाक्ष करती इस पुस्तक की कथाएँ पढ़कर लगा कि सच में हम अपने जीवन में कितनी ऐसी बातें हैं जिन्हे नजरअंदाज करते हैं। अगर हम उन पर थोड़ा सा ध्यान दें तो हमें काफी कुछ सीखने और समझने को मिल सकता है।
पुस्तक : समकालीन सौ लघुकथाएँ लेखक : डॉ. सतीश दुबे प्रकाशक : आकाश पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स मूल्य : 150 रुपए