क्या हम अपने गौरवशाली संस्कृति और अतीत से दूर होते जा रहे हैं? क्या हम आत्मगौरव को भूलकर पाश्चात्य रंग में पूरी तरह ढलते जा रहे हैं?क्या हम पाश्चात्य संस्कृति के आकर्षण में आत्मविस्मरण के जाल में उलझते जा रहे हैं?
इन्ही सवालों के उधेड़-बुन में लगे विशुद्ध चिंतक और लेखक डॉ. मनोहर भण्डारी की यह अनूठी कृति पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण में लिप्त वर्तमान भारतीयों को आत्मचिंतन, आत्मविवेचन और आत्मसमीक्षा को विवश करती है।
लेखक इस कृति में संवाद शैली की रोचक विधा को अपनाते हुए भारतीय संस्कृति के तीन गौरवशाली आयाम भाषा, भूषा व भोजन की
क्या हम अपने गौरवशाली संस्कृति और अतीत से दूर होते जा रहे? क्या हम आत्मगौरव को भूलकर पाश्चात्य रंग में पूरी तरह ढलते जा रहे हैं...
महिमामंडित करते हुए वर्तमान में इसके अपभ्रंश स्वरूप पर गहरी चिंता जताई है। लेखक ने फास्ट फूड, कोल्ड ड्रिंक से लेकर यौनशिक्षा के विस्तृत दायरे में वर्तमान भारतीय संस्कृति व समाज के लगभग हरेक महत्वपूर्ण पहलू पर प्रभावी कुठाराघात किया है।
लेखक ने दो पात्रों एडर्वड एवं सेम का सहारा लिया है जो क्रमश: अमेरिकी व ब्रिटिश संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते है।
इन पात्रों के आपसी संवाद के माध्यम से वर्तमान भारतीयों की सहज प्रवृतियों पर वार करते हुए यह बताने की कोशिश की है कि किस तरह यौनशिक्षा जिसने अमेरिका में तांडव मचाया हुआ है, उसे हम बड़े गौरव के साथ स्कूल के पाठ्यक्रमों में शामिल कर रहे हैं।
क्यों हमें अपने ही योग को योगा के रूप में स्वीकार करने में गर्व महसूस होता है, क्यों हम अपने आयुर्वेद के महत्व को पाश्चात्य संस्कृति का ठप्पा लगने पर ही समझ पाते हैं?
परंतु लेखक डॉ. मनोहर भण्डारी, इस कृति में यह बताना भूल गए कि पाश्चात्य संस्कृति में रंग चुके एवं आधुनिक सुख-सुविधा प्रदान करने वाले संसाधनों की एक बड़ी तादाद पर पूर्णरूप से निर्भर हो चुके भारतीयो की एक बड़ी ज़मात को हमारी गौरवशाली परंपरा एवं जीवन-शैली के पुराने ढर्रे पर पूर्णरूपेण वापस लाना कैसे संभव है।
हालाँकि, इस पुस्तक के माध्यम से सुचिंतक लेखक ने गौरवशाली भारतीय अतीत की स्थापना की है, वहीं धूर्त और कूटनीतिज्ञ अंग्रेज तथा दुनिया में अपनी साम्राज्यवादी मनोवृति के साथ एकाधिकार का स्वप्न देख रहे अमेरिकावासियों के भ्रष्ट व कुटिल मंसूबे को उदघाटित करने का सराहनीय एवं प्रभावपूर्ण प्रयास किया है। पुस्तक : भूलने के विरूद्ध लेखक : डॉ. मनोहर भंडारी प्रकाशन : विनियोग परिवार ,मुम्बई मूल्य : 20 रूपए