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रविवार, 5 अक्टूबर 2025
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Written By WD

किशोरावस्था के रोग कील-मुँहासे

किशोरावस्था कील मुँहासे तैलीय पदार्थ
NDND
किशोरावस्था शुरू होते ही शरीर में हार्मोन्स सक्रिय होने के कारण कई परिवर्तन होते हैं। त्वचा के नीचे सिबेसियस ग्लांड्स एक तैलीय पदार्थ बनाती है जो हमारी त्वचा की प्राकृतिक चमक एवं स्वास्थ्य के लिए अत्यावश्यक होता है। जब इन ग्रंथियों में तैलीय पदार्थ अत्यधिक मात्रा में बनने लगता है तो वह जमकर कील का रूप धारण कर लेता है।

आज के वैज्ञानिक युग में जहाँ चिकित्सा के नए-नए तरीके उपलब्ध हैं, वहाँ एक आम व्यक्ति भी अपने स्वास्थ्य के प्रति पहले से कहीं अधिक जागरुक हो गया है। आजकल किशोरावस्था प्रारंभ होते ही बहुत से लोग कील-मुँहासों से पीड़ित होने लगते हैं। और यह उनके लिए एकचिंता का कारण बन जाता है।

कील-मुँहासे हमारे माथे, गालों, गर्दन, छाती, पीठ आदि जगहों पर काले बिन्दु के रूप में, लाल रंग के उभार के रूप में या फुंसी के रूप में पाए जा सकते हैं। ये दिखने में काफी अप्रिय होते हैं और साथ-साथ इनमें कुछ दर्द, खारिश या जलन भी हो सकती है।

हमारी त्वचा में कुछ ग्रंथियाँ तो पसीने के लिए होती हैं। जो शरीर का तापमान नियमित करने में सहायक होती हैं। इसके साथ-साथ कुछ अन्य ग्रंथियाँ भी होती हैं जिन्हें हम सिबेसियस ग्लांड्स कहते हैं। ये ग्रंथियाँ एक तैलीय पदार्थ बनाती हैं जो हमारी त्वचा की प्राकृतिकचमक एवं स्वास्थ्य के लिए अत्यावश्यक होता है। ये ग्रंथियाँ पैरों के तले, हथेली एवं ऊपरी पलकों को छोड़कर सारे शरीर में विद्यमान होती हैं। इन ग्रंथियों की संख्या सिर, चेहरे, गर्दन, छाती एवं पीठ पर अधिक होती हैं। कील-मुँहासे इन्हीं ग्रंथियों की एक बीमारी है।

जब इन ग्रंथियों में तैलीय पदार्थ अत्यधिक मात्रा में बनने लगता है तो वह जमकर कील का रूप धारण कर लेता है। मुँहासों में इन ग्रंथियों के मुँह बंद हो जाते हैं और तैलीय पदार्थ उनमें जमा होता रहता है। बाद में इनमें जीवाणु उत्पन्ना हो जाते हैं जिससे मुँहासों में दर्द भीहो सकता है और मवाद भी बन सकता है। यानी मँुहासे फुंसी का रूप धारण कर लेते हैं।

कील-मुँहासों के लिए जल्दी से जल्दी अपने डॉक्टर से मिलना चाहिए और इलाज करवाना चाहिए क्योंकि यह रोग लाइलाज नहीं है और सही ढंग से इलाज करने से जल्द से जल्द ठीक भी होती है। अगर इनका ठीक समय पर इलाज न करवाया जाए तो इनमें मवाद भर सकता है और घाव बनसकते हैं जो बाद में भरकर चेहरे पर भद्दे निशान छोड़ सकते हैं। इस बीमारी से पीड़ित मरीजों को कुछ सावधानियाँ बरतनी चाहिए जो इस प्रकार है-

* चेहरे को गुनगुने पानी और साबुन से दिन में कम से कम दो बार धोना चाहिए और तौलिए से धीरे-धीरे सुखाना चाहिए। याद रखें कि तौलिए को चेहरे पर जोर से न रगड़ें।

* बालों में शैम्पू या साबुन लगाकर साफ करना चाहिए ताकि अत्यधिक तेल निकल जाए।

* चेहरे पर ज्यादा मेकअप और सौंदर्य प्रसाधन इस्तेमाल न करें और सोने से पहले इसे साबुन से धो दें।

* खाने में तली हुई वस्तुएँ, चाकलेट, मक्खन, मेवों का सेवन कम से कम मात्रा में करना चाहिए।

* खुली हवा में नियमित रूप से व्यायाम करें।

* पर्याप्त समय के लिए आराम करें।

* कील एवं मुँहासों को नाखून से न छिलें।

* नियमित रूप से दवाई लें।

अगर ये सावधानियाँ ठीक प्रकार से बरती जाएँ तो बहुत लाभ हो सकता है।

कील-मुँहासों के अनेक कारण

* प्राकृतिक रूप से तैलीय त्वचा

* वातावरण का तापमान

* हार्मोन्स- किशोरावस्था में हार्मोन्स तेजी से बनते हैं इसीलिए किशोरावस्था में मुँहासे अधिक होते हैं।

* पेट साफ न होना।

* खाने में अधिक मात्रा में वसा एवं स्टार्च लेना