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Last Modified: शुक्रवार, 30 जून 2023 (19:20 IST)

गुरु पूर्णिमा 2023 : किसे बनाएं अपना गुरु?

गुरु पूर्णिमा 2023 : किसे बनाएं अपना गुरु? - Guru Purnima 2023 date and time
Guru Purnima 2023 date and time : 3 जुलाई 2023 को गुरु पूर्णिमा है। हमें जो भी व्यक्ति कोई शिक्षा या विद्या प्रदान करता है वह हमारा गुरु है, परंतु यदि आप आध्यात्म के मार्ग पर जाना जाहते हैं तो आपको सोच समझकर ही किसी को गुरु बनाना चाहिए। हिन्दू धर्म में किसी को गुरु बनने या गुरु बनाने की एक निश्‍चित प्रक्रिया होती है। इस प्रक्रिया में सबसे पहले दीक्षा दी जाती है।
 
दीक्षा क्या है?
दिशाहीन जीवन को दिशा देना ही दीक्षा है। दीक्षा एक शपथ, एक अनुबंध और एक संकल्प है। दीक्षा के बाद व्यक्ति द्विज बन जाता है। द्विज का अर्थ दूसरा जन्म। दूसरा व्यक्तित्व।
 
दीक्षा के प्रकार कितने?
हिन्दू धर्म में 64 प्रकार से दीक्षा दी जाती है। जैसे, समय दीक्षा, मार्ग दीक्षा, शाम्भवी दीक्षा, चक्र जागरण दीक्षा, विद्या दीक्षा, पूर्णाभिषेक दीक्षा, उपनयन दीक्षा, मंत्र दीक्षा, जिज्ञासु दीक्षा, कर्म संन्यास दीक्षा, पूर्ण संन्यास दीक्षा आदि।
 
क्यों और कब लेना चाहिए दीक्षा?
दीक्षा लेने का मतलब यह है कि अब आप दूसरे व्यक्ति बनना चाहते हैं। आपके मन में अब वैराग्य उत्पन्न हो चुका है इसलिए दीक्षा लेना चाहते हैं। अर्थात अब आप धर्म के मोक्ष मार्ग पर चलना चाहते हैं। अब आप योग साधना करना चाहते हैं। अक्सर लोग वानप्रस्थ काल में दीक्षा लेते हैं। दीक्षा देना और लेना एक बहुत ही पवित्र कार्य है। इसकी गंभीरता को समझना चाहिए।
 
स्वयंभू गुरुओं की भीड़?
यदि आपने किसी स्वयंभू बाबा से दीक्षा ले रखी है जबकि आपका संन्यास या धर्म से कोई नाता नहीं है बल्कि आप उनके प्रवचन, भजन, भंडारे और चातुर्मास के लिए इकट्टे हो रहे हैं और उन्हीं का लाभ कर रहे हैं और उनके लाभ में ही आपका लाभ छुपा हुआ है तो आपको समझना चाहिए कि आप किस रास्ते पर हैं। यह धर्म का मार्ग नहीं है। इससे धर्म की हानि तो हो ही रही है साथ ही आपका भी नुकसान ही होगा।
 
वर्तमान दौर में अधिकतर नकली और ढोंगी संतों और कथा वाचकों की फौज खड़ी हो गई है और हिंदुजन भी हर किसी को अपना गुरु मानकर उससे दीक्षा लेकर उसका बड़ा-सा फोटो घर में लगाकर उसकी पूजा करता है। उसका नाम या फोटो जड़ित लाकेट गले में पहनता है। संत चाहे कितना भी बढ़ा हो लेकिन वह भगवान या देवता नहीं, उसकी आरती करना, पैरों को धोना और उस पर फूल चढ़ाना धर्म का अपमान ही है। स्वयंभू संतों की संख्‍या तो हजारों हैं उनमें से कुछ सचमुच ही संत हैं बाकी सभी दुकानदारी है। 
किसे बनाना चाहिए गुरु?
यदि हम हिन्दू संत धारा की बात करें तो इस संत धारा को शंकराचार्य, गुरु गोरखनाथ और रामानंद ने फिर से पुनर्रगठित किया था। जो व्यक्ति उक्त संत धारा के नियमों अनुसार संत बनता है वहीं हिंदू संत कहलाने के काबील है।
 
हिंदू संत बनना बहुत कठिन है ‍क्योंकि संत संप्रदाय में दीक्षित होने के लिए कई तरह के ध्यान, तप और योग की क्रियाओं से व्यक्ति को गुजरना होता है तब ही उसे शैव या वैष्णव साधु-संत मत में प्रवेश मिलता है। इस कठिनाई, अकर्मण्यता और व्यापारवाद के चलते ही कई लोग स्वयंभू साधू और संत कुकुरमुत्तों की तरह पैदा हो चले हैं। इन्हीं नकली साधु्ओं के कारण हिंदू समाज लगातार बदनाम और भ्रमित भी होता रहा है। हालांकि इनमें से कमतर ही सच्चे संत होते हैं।
 
13 अखाड़ों में सिमटा हिंदू संत समाज पांच भागों में विभाजित है और इस विभाजन का कारण आस्था और साधना पद्धतियां हैं, लेकिन पांचों ही सम्प्रदाय वेद और वेदांत पर एकमत है। यह पांच सम्प्रदाय है-1.वैष्णव 2.शैव, 3.स्मार्त, 4.वैदिक और पांचवां संतमत।
 
वैष्णवों के अंतर्गत अनेक उप संप्रदाय है जैसे वल्लभ, रामानंद आदि। शैव के अंतर्गत भी कई उप संप्रदाय हैं जैसे दसनामी, नाथ, शाक्त आदि। शैव संप्रदाय से जगद्‍गुरु पद पर विराजमान करते समय शंकराचार्य और वैष्वणव मत पर विराजमान करते समय रामानंदाचार्य की पदवी दी जाती है। हालांकि उक्त पदवियों से पूर्व अन्य पदवियां प्रचलन में थी।
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