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पीर मेरी, प्यार बन जा !
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नीरज पीर मेरी, प्यार बन जा ! लुट गया सर्वस्व, जीवन, है बना बस पाप-सा धन, रे हृदय, मधु-कोष अक्षय, अब अनल-अंगार बन जा ! पीर मेरी, प्यार बन जा ! अस्थि-पंजर से लिपटकर, क्यों तड़पता आह भर-भर, चिर विधुर मेरे विकल उर,जल अरे जल, छार बन जा ! पीर मेरी, प्यार बन जा ! क्यों जलाती व्यर्थ मुझको ! क्यों रुलाती व्यर्थ मुझको ! क्यों चलाती व्यर्थ मुझको ! री अमर मरु-प्यास, मेरी मृत्यु ही साकार बन जा ! पीर मेरी, प्यार बन जा !