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Last Updated : मंगलवार, 15 फ़रवरी 2022 (17:28 IST)

Goa Assembly Election: वो 4 मुद्दे जो बदल सकते हैं गोवा की ‘सियासी किस्‍मत’

Goa Assembly Election: वो 4 मुद्दे जो बदल सकते हैं गोवा की ‘सियासी किस्‍मत’ - Goa election, goa politics, manohar parrikar, four issues in Goa,
विधानसभा चुनावों में अब तक सिर्फ उत्‍तर प्रदेश के चुनाव को बेहद अहम माना जाता रहा है। लेकिन खबर है कि गोवा के विधानसभा चुनाव में उलटफेर और नए समीकरणों की बेहद ज्‍यादा संभावना है।

रिपोर्ट कहती है कि यहां कई मुद्दे ऐसे हैं, जो गोवा का समीकरण बदलकर नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं। हालांकि गोवा विधानसभा चुनाव के लिए सभी 40 सीटों के लिए वोटिंग हो चुकी है। जाहिर है, दाव लगाने वाले उम्‍मीदवारों की किस्‍मत ईवीएम में कैद हो चुकी है।

बावजूद इसके उन मुद्दों पर बात की जा सकती है, जो गोवा की सियासत को बदलने या हार-जीत के समीकरण बदलने की ताकत रखते हैं। कह सकते हैं गोवा की ‘सियासी किस्‍मत’ बदल सकते हैं ये चार प्रमुख मुद्दे।

मुद्दे जो बदलेंगे गोवा की किस्‍मत

बदलते चेहरे का भ्रम
2017 में बीजेपी ने चुनाव जीता था। उसके बाद बीजेपी का चेहरा बदलता रहा। 2019 में मनोहर पर्रिकर के निधन के बाद यह और भी बदल गया। विधानसभा में भाजपा के आधे से ज्यादा विधायक कांग्रेस के हैं। इस बार बाहर से आने वालों को करीब 20 टिकट दिए गए हैं। इसलिए मतदाताओं के सामने भाजपा का कोई चेहरा नहीं था।

वहीं 5 साल में कांग्रेस के लिए ये सवाल रहा कि क्या सबसे बड़ी पार्टी को अपने लोगों को जुटाए रखने में सक्षम नहीं होना चाहिए। अब कांग्रेस ने 38 नए चेहरे दिए हैं। पार्टी बदलकर आए हुए किसी को टिकट नहीं दिया गया। 

ऐसे में भले ही दिगंबर कामत जैसे पुराने लोग हैं, लेकिन बाकी नए हैं। वे स्थापित नहीं हैं, इसलिए कांग्रेस की पहचान का सवाल उठता है। न तो भाजपा और न ही कांग्रेस को पता है कि उनका वोट शेयर क्या है और कितने मतदाता हैं। बीजेपी के इसके दो कारण यह हैं कि एक तो उन्हें पता नहीं है कि उनके कैडर और कोर वोटर उनसे कितने दूर हैं।

पर्रिकर के बगैर भाजपा
मनोहर पर्रिकर फैक्टर गोवा में भाजपा के लिए एक संवेदनशील मुद्दा बन गया। पिछले दो दशकों में यहां भाजपा की सफलता में मनोहर  पर्रिकर की छवि, ईसाइयों सहित सभी वर्गों में उनका समर्थन, उनके द्वारा निर्धारित राजनीतिक गणित सब उनके पक्ष में थे। लेकिन इस ये चुनाव मनोहर पर्रिकर के बगैर हो रहा है। प्रमोद सावंत मुख्यमंत्री बने, लेकिन उनके पास पर्रिकर जैसी न तो शख्‍सियत है और न ही भाजपा के सभी स्रोत। इस बीच देवेंद्र फडणवीस ने प्रभारी बनकर पूरी जिम्मेदारी संभाली।

पर्रिकर ने भले ही बाहरी पार्टियों के समर्थन से सरकार बनाई थी, लेकिन उनकी छाप उन्हीं की थी। उनके बाद कांग्रेस और अन्य पार्टियों के लोगों को लाने की होड़ शुरू हो गई। इसलिए पर्रिकर की भाजपा और वर्तमान भाजपा के बीच की खाई केवल दो वर्षों में गिर गई। इसके अलावा उनके बेटे उत्पल को टिकट नहीं दिया गया था, तो इस बात पर चर्चा शुरू हो गई थी कि क्या पर्रिकर को अब भाजपा में शामिल होना चाहिए। उत्पल की बगावत भाजपा के सामने मुद्दा बना रहा। वे स्वतंत्र रूप से खड़े रहे। इस चुनाव में पर्रिकर की भाजपा और पर्रिकर के बाद की भाजपा के बीच तुलना की जा रही है।

बाहरी दल की भूमिका
बाहरी दल इस साल के गोवा चुनाव में एक महत्वपूर्ण कारक है। यहां स्थानीय दलों के अलावा राज्य के बाहर के क्षेत्रीय दल कभी नहीं आए। पिछले चुनाव में 'आप' आई, लेकिन नतीजा न के बराबर रहा। लेकिन उसके बाद अब उन्होंने यहां काम कर के एक संगठन बना लिया है और इस चुनाव में उन्होंने यहां अपनी ताकत बना ली। कुछ महीने पहले ममता की 'तृणमूल' यहां आई,  लेकिन इसने कई राजनीतिक गणित बिगाड़ दिए।

जाति-धर्म का असर
दूसरे राज्‍यों की तरह गोवा में जाति-धर्म के आधार पर प्रचार और चुनाव नहीं हैं। यहां उम्मीदवारी और वोट इन दोनों बातों को देखकर नहीं दिए जाते। लेकिन हर पार्टी चुनाव और सरकारों में इसे संतुलित करने की कोशिश करती है। हालांकि इस साल 'आप' ने इस समझ को तोड़कर नया खेल खेला है। हिंदुओं में भंडारी समुदाय की आबादी 30 फीसदी से ज्यादा होकर भी उन्हें अभी तक एक ही मुख्यमंत्री मिला है।

उन्होंने यह भी घोषणा की है कि अगर वे सत्ता में आए तो ईसाई  समुदाय के उपमुख्यमंत्री होंगे। यह पहली बार है जब गोवा राजनीति में शामिल हुआ है। तो इस खेल का परिणाम क्या होगा यह देखा जाना चाहिए।

गोवा में ईसाई और हिंदू समुदायों का वर्चस्व होकर भी धर्म राजनीति नहीं की गई। भाजपा ने यहां कभी भी आक्रामक हिंदुत्व की भूमिका नहीं निभाई। पर्रिकर ने हमेशा ऐसी नीति अपनाई जो स्थानीय समाज के लिए अनुकूल हो। अब हर कोई इस बात पर ध्यान दे रहा है कि नई बीजेपी क्या कर रही है।

कुछ समय पहले मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने पुर्तगाली काल के दौरान ध्वस्त किए गए मंदिरों का मुद्दा उठाया था। उसी से गरमागरम चर्चा शुरू हो गई कि क्या यहां भी बीजेपी हिंदुत्व की ओर बढ़ रही है।

दलों ने झोंकी अपनी ताकत
गोवा विधानसभा चुनाव में कई राजनीतिक दलों ने अपनी ताकत झोंक दी है। गोवा में कांग्रेस, मगोप और बीजेपी के बीच टक्कर होती थी। हालांकि इस साल ममता बनर्जी को तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, शिवसेना और एनसीपी भी चुनावी मैदान में खुलकर उतरी।

गोवा में प्रमुख उम्मीदवारों में मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत (भाजपा), विपक्ष के नेता दिगंबर कामत (कांग्रेस), पूर्व मुख्यमंत्री चर्चिल अलेमाओ (टीएमसी), रवि नाइक (भाजपा), लक्ष्मीकांत पारसेकर (निर्दलीय), पूर्व उपमुख्यमंत्री विजय सरदेसाई (जीएफपी), सुदीन ढवळीकर (एमजीपी),  पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के बेटे उत्पल पर्रिकर और आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री का चेहरा अमित पालेकर शामिल है।

10 से बीजेपी की सरकार, आगे क्‍या?
शिवसेना और राकांपा भी गोवा चुनाव में भाग्य अजमा रही है। वहीं अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने अपने दम पर चुनाव लड़ा है। गोवा में पिछले दस साल से बीजेपी की सरकार है और देखना होगा कि वोटर ने इस बार किस्मत में क्या लिखा है। गोवा की 40 सीटों के लिए 301 उम्मीदवार मैदान में थे। गोवा में सत्ता हासिल करने के लिए बीजेपी,  कांग्रेस, शिवसेना, एनसीपी, आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस कड़ी मेहनत की है। अब सत्ता किसे मिलती है देखना दिलचस्प होगा।
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