आज विश्व पोहा दिवस : यह इंदौरी लेख है आपके लिए
अधिकतर भारतीय लोगों की शुरुआत पोहे से होती है। सुबह-सुबह एक प्लेट पोहे के साथ चाय... समझो मन प्रफुल्लित हो गया। 7 जून को इंदौर में विश्व पोहा दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने की शुरुआत इंदौरी कलाकार राजीव नेमा द्वारा की गई। इंदौर में आज के दिन कई जगहों पर पोहे का वितरण होता था। मालवा के हर दूसरे घर में आपको सुबह में पोहे का नाश्ता मिल जाएगा। जिस तरह से पोहे को स्वादिष्ट बनाकर खाया जाता है। इसकी बात कुछ ओर ही होती है।
क्या खास वजह से विश्व पोहा दिवस मनाने की ?
7 जून को विश्व पोहा दिवस इसलिए विशेष रूप से मनाया जाता है क्योंकि यह खाने में स्वादिष्ट और हेल्दी दोनों हैं। जी हां, इसे हर उम्र के लोग खा सकते हैं। पोहे को जिस तरह से तेल रखकर छौंक लगाया जाता है, वह खाने के स्वाद को बढ़ा देता है। साथ ही इसे जितना सरल विधि से बनाते हैं यह उतना पौष्टिक होता है।
कैसे हुई पोहे की पहचान-
पोहे के प्रसिद्ध होने के पीछे कई सारी कहानियां है। पोहे की सबसे अधिक खपत महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में होती है। मप्र में सबसे अधिक मालवा इलाके में इसे खाया जाता है। कहा जाता है कि पोहा इंदौर में देश की आजादी के करीब 2 साल बाद आ चुका था। महाराष्ट्र के रहने वाले पुरुषोत्तम जोशी अपनी बुआ के यहां इंदौर आए। वह जॉब करते थे। इंदौर में रहकर जोशी के मन में पोहे की दुकान खोलने का विचार आया। इसके बाद से पोहा इंदौर का हो गया।
65 टन उठता था पोहा-
2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक इंदौर में करीब 65 टन पोहा उठा इंदौर के थोक बाजार से उठता था। हालांकि लॉकडाउन के बाद भी इसमें मामूली ही गिरावट दर्ज होगी। क्योंकि पोहा बाहर ही नहीं घर में भी रोज उठता है।
पोहे का उत्पादन मुख्य रूप से उज्जैन और छत्तीसगढ़ में होता है। लेकिन इसकी सबसे अधिक खपत इंदौर शहर में होती है। आज कई सारे बॉलीवुड, किक्रेटर्स, फॉरेनर इंदौरी पोहे के दिवाने हैं। मप्र और महाराष्ट्र के साथ ही यह दिल्ली, छत्तीसगढ़, यूपी और राजस्थान में भी खूब खाया जाता है।
पोहे के हैं अलग-अलग नाम-
पोहे को अलग-अलग राज्यों में भिन्न नाम से जाना जाता है। मप्र और महाराष्ट्र में इसे पोहे के नाम से जाना जाता है। तो कोई इसे पीटा चावल और चपटा चावल भी कहता है। बंगाल और असम में चीड़ा, तेलगु में अटुकुलू, गुजराती में पौआ के नाम से जाना जाता है।
जीआई टैग की होड़ में पोहा-
इंदौरी पोहा विश्व और भारत देश में अत्यधिक लोकप्रिय हो चुका है। साल 2019 से इसे जीआई टैग (जियोग्राफिकल इंडेक्स टैग) देने की लगातार सिफारिश की जा रही है। हालांकि अभी भी प्रोसेस जारी है।
ज्योग्राफिकल इंडेक्स टैग उन उत्पादों या किसी चीज को दिया जाता है जिसका महत्व किसी एक जगह की पहचान से जुड़ा हो। यह टैग मिलने के बाद कोई व्यक्ति और किसी भी प्रकार की संस्था उसे अपना नहीं बता सकती है।
विश्वभर में प्रसिद्ध इंदौर के पोहे नहीं खाए है तो एक बार जरूर खाएं। लेकिन अभी नहीं लॉकडाउन खुलने के बाद और कोरोना का साया खत्म होने के बाद।